बहुत उमस भरी शाम है। शाम से रात होने को आई पर उमस है कि ख़त्म ही नहीं हो रही है। रात के भोजन के बाद बाहर टहलने निकला पर जल्द ही अंदर आ गया। यँहा पंखे की हवा सुकून देती है। आसमान एक दम चुप है। पेड़ो के पत्ते भी शान्त है। एक आध तारा आसमान पर दिख रहा है। मैं पत्नी के साथ बालकोनी में आ बैठा हूँ। छत पर लगा पंखा पूरी गति से घूम रहा है।पास रखे गमले की पौध उसकी तेज हवा से हिल रही है। बाहर लगा आम का पेड़ जो पिता जी ने आठ साल पहले रोपा था, जवान हो चला है। फल आने में अभी समय है पर नए नवेले लाल लाल पत्ते आते जा रहे हैं। बालकोनी में बैठकर उसे निहारना बहुत भला लगता है। नीचे की क्यारी में तुलसी की कई पौध लगी है। मंजरी से भरी पौध , मन को वृंदावन कर देती है। पिछले वर्ष यँहा रात की रानी का झाड़ था जिसे माली ने हटा दिया। पूरी बालकोनी उसकी तीखी मदमाती गंध से महकती रहती थी। दीवार पार सामने की कोठी के पिछवाड़े में जो आम का पेड़ लगा है, आमो से लदा पड़ा है। उनकी फूलो के बेल हमारी तरफ आ गई है और सारे पुष्प जो लाल चटक रंगो के और हल्के गुलाबी रंगो के हैं, हमारी कॉलोनी की शोभा बढा रहे हैं। मधु मालती की बेल जो रसोई की खिड़की से होकर छत तक गई है, हल्की हलकी हिलने लगी है। शायद हवा चल पड़ी है- चाहे हल्के से ही सही, बही तो है। आम ने भी झूमना शुरू कर दिया है। आसमान पीला सा हो रहा है। शायद रात में बरसे। पत्नी ठंडाई बना कर ले आई है। रूह को हर घूंट ठंडक दे रहा है। जब आनंद आने लगे तो स्वाद पेय समाप्त हो जाता है। चले। रात गहरा रही है। सोने का उपक्रम करें। कल रविवार है। उठने की तो जल्दी नहीं है, पर नींद अपने समय पर आ ही जाती है।