आज ऑफिस के बाद कँही जाना हुआ। लौटते लौटते आठ रास्ते में ही बज गए। 106.4 पर विविध भारती प्रसारित हो रहा था। आठ बजते ही "हवा महल" शुरू हुआ। "बुद्धिमान कौन" झलकी का हल्का फुल्का प्रसारण हुआ।" हवा महल" की चिर परिचित सिग्नेचर धुन सुनते ही कोई पचास वर्ष पीछे लौट गया। वो धुन आज भी वही है। बिल्कुल नहीं बदली। उस समय इसका प्रसारण समय रात सवा नौ बजे हुआ करता था। हमें दिन भर इसका इंतज़ार रहता था। रात समय से पहले ही रेडियो को घेर कर हम सब बैठ जाते थे। और इसकी चिर परिचित धुन सुनते ही एक और नई झलकी के लिए हम तैयार हो जाते थे। पन्द्रह मिनट न जाने कँहा उड़ जाते थे। और फिर इंतज़ार रहता था अगले दिन का। उन दिनों न टेलीविज़न थे, न स्मार्ट फोन और न ही इंटरनेट। इतने परिवर्तन के बाद भी विविध भारती ने अपना ये "हवा महल" प्रसारण आज भी जारी रखा हुआ है। ये एक धरहोर को संभालने जैसा है। इसके लिए विविध भारती साधु वाद का पात्र है। पता नहीं इसे कितने लोग आज सुनते हैं पर इसका आज भी जारी रहना ये सिद्ध करता है कि अभी इसके श्रोता शेष हैं- ये एक पीढ़ी है जो जल्द ही लुप्त होने वाली है।