Sunday, 31 March 2019

यमुना तट का मंदिर

जैसे मुझे पाँच सितारा होटलों में जाने से असहजता होती है, ठीक वैसी ही असहजता भव्य मन्दिरों में जाने से भी होती है। अभी पिछले दिनों की बात है, मुझे एक बड़े होटल में लंच के लिए जाना पड़ा। जैसे ही पोर्च में कार रुकी,सफ़ेद बुरार्क ड्रेस और साफा पहने एक दरबान ने भाग कर आ के दरवाज़ा खोला। सुरक्षा अधिकारी ने बड़े अदब से अपना डिटेक्टर मेरे चारों ओर घुमाया और सेल्यूट किया। आगे ही एक सजी संवरी परी ने दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन किया। मुझे लगा कि मैं अचानक से कोई अति महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गया हूँ। टेबल पर बैठते ही एक ड्रेस से सुस्सजित व्यक्ति आया। मैंने पूंछा, 'खाने में क्या क्या है?" वो बोला, सर् हमारे यँहा तीन किचन है- चाइनीस, इटालियन और इंडियन। इंडियन किचन को सबसे बाद में रखने से मुझे कुछ अटपटा लगा।  मैंने फिर कहा कि बिना प्याज़, लहसन का कुछ मिलेगा क्या? उसने मुझे ऐसे देखा मानो में कोई अजूबा हूँ। बोला,मैं शेफ़ से चैक करता हूँ। और कहना न होगा कि मुझे कुछ भी मेरे लायक तैयार नहीं मिला। वो अलग बात है कि उन्होंने कृपा कर मेरे लिए एक दाल बना दी। जिससे मैंने अपना काम चलाया।

खैर मैं बात कर रहा था, मन्दिरों की। मैं बड़े बड़े भव्य मन्दिरों में भी गया हूँ पर शान्ति मुझे किसी छोटे से, पुरातन, जीर्ण शीर्ण मन्दिर में जा कर ही मिलती है। आज  यमुना किनारे बने एक ऐसे ही पुष्टि मार्गीय मन्दिर का मैं जिक्र करने जा रहा हूँ जिसके परिधि क्षेत्र में आते ही मुझे दिव्यता का अहसास होता है। अभी गत रविवार पास में बनी गऊशाला जाना हुआ। एक बहुत छोटी सी बछिया अंदर बंधी थी। शायद दो दिन की थी। पत्नी ने पूंछा कि इसकी माँ कौनसी है। संचालक ने बताया कि जन्म देने के बाद ही उसने प्राण छोड़ दिए। बहुत कमज़ोर थी।अब इसे कोई और गाय दूध नहीं पिलाती। बोतल से पिलाना पड़ता है। मैंने सोचा कि हर योनि में दुःख लगभग समान ही हैं। तभी पत्नी ने कहा कि साथ के मंदिर के दर्शन भी कर लेते हैं। रविवार का दिन था कोई जल्दी तो थी नहीं। फ्लाईओवर के पास से निकलते हुए हम यमुना तट पर आ गए। मैं पहले भी इस मंदिर में आ चुका हूँ पर उस दिन कोई उत्सव था और खासी भीड़ भाड़ थी। आज एक सुकून भरी शांति पसरी थी यमुना किनारे। पास खड़ा पलाश का वृक्ष लाल पुष्पों से लदा था। मैंने मोबाईल से उसका एक चित्र लिया जिसे मैंने फेस बुक पर पोस्ट भी किया था। अंदर जाते ही एक सुंदर हष्ट पुष्ट गऊ बंधी थी। देख कर प्रसन्ता हुई। क्यारी में लगी तुलसी वृन्द सुबह की मद मस्त बयार से हिल रही थी। मुख्य मन्दिर में प्रवेश करते ही देखा, दर्शन अभी बन्द थे। सामने बैठे सूरदास और एक अन्य भक्त हार्मोनियम पर मधुर आवाज में प्रभु के श्रंगार के पद उच्च स्वर में गा रहे थे। उनकी आवाज़ में एक सम्मोहनी शक्ति थी जिससे वँहा का वातावरण भक्ति भाव से परिपूर्ण हो रहा था। वँहा हमारे अतिरिक्त कोई अन्य दर्शनार्थी नहीं था। हमने प्रभु के चरणों मे दंडवत किया। पास में बने गिरिराज पर्वत की परिक्रमा करी और बाहर आ गए। पास ही यमुना आरती स्थल था। पत्नी ने यमुना आरती का समय मालूम किया और देखने की इच्छा प्रकट करी। यमुना श्री कृष्ण की चतुर्थ पटरानी है। उनके तट पर बने इस पुष्टिमार्गीय मन्दिर में जा करअसीम शांति और प्रभु के निकट होने का दिव्य अहसास मुझे हुआ। हम दिल्ली के लोगो ने आज यमुना की जो दुर्दशा कर दी है , उसे देख कर दुःख होता है। परम् पावनी यमुना इस शहर में आगन्तुक है। यँहा से विदा लेते लेते हम उसे कितनी प्रदूषित कर देते हैं! पर इससे श्री यमुना के आधिदैविक रूप  में कोई अंतर नहीं आता। वह तो वैसी ही नील वर्ण अपने कर कमलों में कमल के पुष्पो की माला लिए श्री कृष्ण के श्रृंगार को आतुर हैं।

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