Sunday, 18 April 2021
नरेंद्र कोहली
मैं साहित्यकारों को बहुत कम ही जानता हूँ। उन्हीं कुछ साहित्यकारों से परिचित हूँ जिन्हें मैंने अपने स्कूल या कॉलेज की पढ़ाई के दौरान पढ़ा। या फिर 'धर्मयुग', 'साप्ताहिक हिंदुस्तान', 'सारिका, और 'कादम्बिनी' के माध्यम से जिनकी रचनाएं मुझे पढ़ने को मिली। युवावस्था में मुझे पढ़ने का बहुत शौक था। और इसी के चलते मैंने कई पुस्कालयों की सदस्यता ले रखी थी। इनमें मंडी हाऊस पर स्थित हिंदी एकादमी भी शुमार थी। इतना सब होते हुए भी हिंदी साहित्यकारों का एक बहुत बड़ा वर्ग मुझसे अछूता रह गया जिनमें डॉ नरेंद्र कोहली एक हैं। या कहूँ एक थे। अभी हाल ही में कोरोना से उनकी जीवन लीला की इतिश्री हो गई। आज जब में उनकी 'स्मृति शेष' पढ़ रहा था तो लगा कि उनकी कृतियां मुझसे छूट कैसे गईं! किसी साहित्यकार की रचनाओं को उसके जीवन काल में पढ़ना और मरणोपरांत पढ़ना मेरे लिये दो अलग अलग बातें हैं। जब आप किसी की रचनाओं को उसके जीवन काल मे पढ़ते हैं तो उसके जीवन के बारे में अधिक जानने की जिज्ञासा होती है क्योंकि आप जानते हैं कि किसी मोड़ पर आप उनसे मिल सकते हैं। पर बाद में तो उनकी रचनाएं समय के हस्ताक्षर ही रह जाते हैं जिन्हें आप पढ़ तो सकते हैं, पर उस हस्ताक्षर कर्ता से मिल नहीं सकते। बस जान सकते हैं कि उसने कैसा जीवन जिया होगा। हर लेखक की अपनी एक कहानी होती है। अधिकतर वो अभाव से उपजती है, समाज़ से उसके पात्र लिए जाते है और सामाजिक विसंगतियों का ताना बाना बुनकर लेख़क अपनी रचनाएं जनता है। मैंने आज ही जाना कि रामायण और महाभारत जैसी पौराणिक कथाओं को नरेंद कोहली ने आधुनिक परिपेक्ष्य में देखा और लिखा। उनकी रचित "दीक्षा" जिसका आधार श्री राम कथा थी, उस समय की पत्रिकाओं ने छापी नहीं। जब वो अपनी लागत से उस कृति को छपवाना चाहते थे तो पराग प्रकाशन इसे अपनी पूंजी से छपने को तैयार हो गया। अवसर मिला तो "दीक्षा" को पढूंगा जरूर। अधिकतर डॉ कोहली दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य से जुड़े रहे। पर बाद में त्यागपत्र दे पूर्ण रूप से लेखन से जुड़ गए। अपने साहित्यक जीवन काल में उन्होंने न जाने कितने लोगों के जीवन को छुआ होगा और अपनी छाप छोड़ी होगी। पद्मश्री प्राप्त डॉ नरेंद्र कोहली यूँ तो अपनी महायात्रा पर निकल गए है, पर उनका रचित सहित्य जो समय के अमिट हस्ताक्षर हैं आनेवाले साहित्यकारों और पाठकों को सोचने पर विवश करता रहेगा। यदि किसी मित्र ने उन्हें पढ़ा हो तो अपनी समीक्षा साझा कर सकता है।
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