Sunday, 21 November 2021

पापा का पर्स

आज एक सहकर्मी की अंतिम क्रिया में जाना हुआ। वापस आते ही गुसल में घुसा, सारे कपड़े भिगोये और नहा लिया। गीले वस्त्रों को वाशिंग मशीन में डाल भोजन किया और सो गया। शाम को जब बाजार जाने लगा तो पर्स की खोज हुई। आमतौर पर मैं पर्स ब्रीफकेस में रखता हूँ या फिर दराज़ में डाल देता हूं। नहीं तो क्रॉकरी रैक पर छोड़ देता हूँ। पर आज तो पर्स नदारद था। सोचा गाड़ी में तो नहीं रह गया पर वहाँ भी नहीं मिला। तो घटनाओं की कड़ियों को पीछे से जोड़ना शुरू किया। अंतिम बार पर्स घाट पर जाते समय पेंट की पिछली जेब में था। तो कहीं पेंट के साथ वाशिंग मशीन में तो नहीं चला गया! मशीन तो अपना वाशिंग साइकल पूरा कर कब से रुक चुकी थी। जल्दी से मशीन खोल कपड़े निकाले। जिसकी आशंका थी वही हुआ। पेंट के साथ उसकी पिछली जेब मे पड़ा पर्स भी धुल चुका था। कुछ पांच सौ के नोट थे जो गीले होकर एक दूसरे से चिपक गए थे। चंद पुराने नोट भी थे उनकी हालत तो बयां करने काबिल ही नहीं थी। दो डेबिट कार्ड, एक क्रेडिट कार्ड और ड्राइविंग लाईसेंस की भी हालत अच्छी नहीं थी। पर्स तो पूरी तरह से बूझी बन चुका था। पांच सौ के नोट तो इस्त्री कर सुखा लिए। पर अजीब तरह से कड़क हो गए हैं। पता नहीं चलेंगे या नहीं। कार्ड भी प्रयोग के बाद ही पता चलेंगे कि बदलने पड़ेंगे या नहीं।

समस्या थी पर्स की। इस समय पर्स कहाँ से लाया जाये। अचानक पापा के ब्रीफकेस की याद आई। पिछली बार उनके पुराने कागज़ात संभालते हुए एक Benetton का लेदर का नया पर्स डिब्बे में रखा देखा था। पापा कभी पर्स नहीं रखते थे। उनके पैसे उनकी शर्ट या पेंट की जेब में ही रहते थे। आई कार्ड के बीच में या पॉलीथिन में लिपटे हुए। उनका मानना था कि पिछली पॉकेट में रखा पर्स जेब कतरों को आकर्षित करता है। दुःख तब होता था जब इतनी सावधानी के बाद भी उनकी जेब से पैसे या तो गिर जाते थे या कोई बस में निकाल लेता था। पर वो पर्स कभी नहीं रखते थे। ये पर्स भी शायद उनकी पोती ने गिफ्ट दिया था जिसे उन्होंने बिना प्रयोग किये संभाल कर उसके ऑरिजिनल पैकिंग में रख छोड़ा था। शायद मेरे लिए! आज उनके जाने के इतने वर्ष बाद मुझे उस पर्स की ज़रूरत हुई तो मैंने निकाल लिया। पापा जहाँ कहीं भी होंगें जरूर खुश होंगे कि उनकी संभाल के रखी चीज़ आज मेरे काम आ ही गई। वह हमेशा अपनी चीज़े हमें दे कर खुश होते थे। 

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