'आषाढ का एक दिन' अभी समाप्त किया है। तब के पाठन में और अब के पाठन में बहुत अन्तर है। एक एक संवाद का अर्थ आज समझ आया है। कमाल का लेखन है। और इतना सशक्त प्रस्तुतीकरण है कि शुरू से अंत तक पाठक को बांधे रखता है। कालिदास का वापस आना और मल्लिका से उसका संवाद इस नाटक का ह्रदय है। विलोम का बीच में आना और फिर चले जाना मानो एक स्पंदन हो जो कालिदास को चले जाने पर विवश करता है।जीवन का एक (गलत) निर्णय जीवन की एवं संबंधों की दिशा बदल सकता है। क्योंकि समय किसीकी प्रतीक्षा नहीं करता । और जैसा विलोम ने कहा, "धूप और नैवेध लिए घर की देहरी पर रुका नहीं रहता"। उत्तम प्रस्तुति स्वर्गीय मोहन राकेश की।
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