Thursday, 14 July 2016

चूहों का विवाह

इन दिनों हमारे घर में कुछ उत्पाती घुस गए हैं। उत्पाती भी ऐसे की आप कंही शिकायत भी दर्ज नहीं करा सकते। पहले तो रात में मैन गेट ही बंद करते थे पर अब तो किचन  और ड्राइंग रूम के दरवाजे भी बंद करने पड़ते हैं। पर उत्पाती हैं कि रात भर उत्पात मचाते हैं। कल रात को किचन में गया तो पाया दो मोटे मोटे चूहे एक दूसरे के पीछे दौड़ लगा रहे थे। एक तो बाहर लॉबी में भाग गया। दूसरे की खोज में मैंने उनींदी आँखों से गैस सिलिंडर के पास तलाशा तो नहीं मिला। अभी तो यंही घुसा था। कँहा गायब हो गया! मैंने गैस सिलिंडर बाहर खींचा। नीचे झुक कर देखा। कंही नहीं था। तभी सिलिंडर की नोब के पास नज़र गई। दो मासूम सी छोटी गोल गोल आँखों से वो मुझे ताक रहा था। मानो कह रहा हो इतनी रात गए हमारे क्षेत्र में अनाधिकार प्रवेश का क्या मतलब है। उसकी मोटी लंबी पूंछ सिलिंडर से नीचे लटक रही थी। दोनों कान हिला कर टुकुर टुकुर मुझे ताक रहा था। डर तो कंही उसकी आँखों में था ही नहीं। मैं कुछ करता इससे पहले उसने मुझ पर छलांग लगाई और सिंक के नीचे वाले हिस्से में घुस कर अदृश्य हो गया। मैंने सिलिंडर यथा स्थान सरकाया, लाइट बुझाई और किचन का दरवाजा बंद करके आ गया, जिससे वो बाहर नहीं आ सके। सुबह पत्नी ने देखा लकड़ी का बुरादा किचन के दरवाजे पर बिखरा पड़ा था। गुस्से में आकर उसने दरवाजा ही कुतर दिया।

अब तो यह नित्य का नियम हो गया है। दिन हो या रात आपको गणेश जी के इस वाहन के कंही न कंही दर्शन हो ही जायेंगे। बेटी के विवाह में गणेश जी को न्योता था। पत्नी का कहना है कि विदा नहीं किया इसीलिये प्रभु ने अपने वाहन को हमारे यँहा भेज दिया। कि जाओ, खूब उत्पात करो। प्रभु बिना वाहन के क्या कर रहे होंगे! यँहा ये मूषक तोरई जैसी सब्ज़ी भी खाये जा रहे हैं। पत्नी परेशान है , खाने का सामान कँहा उठा कर रखे!

मुझे तो लगता है कि जब से आई जी एल ने ये गैस की पाइप लाइन डाली है तब से यह उत्पात बढ़ा है। पूरी कॉलोनी में इन्हें तो बे रोकटोक आने जाने का लाइसेंस मिल गया है। चौथी मंजिल से ग्राउंड फ्लोर तक ये तो इस पाइप के सहारे उतर आते हैं। और फिर चढ़ जाते है। किचन का एक्सहॉस्ट इन्हें अंदर आने का रास्ता देता है। आप कँहा तक इनका पीछा करोगे।

मुझे कुछ समय पहले राजधानी ट्रैन का किस्सा याद आ रहा है। रात के 10 बजे ट्रैन चलने को तैयार थी, कि लोअर साइड बर्थ पर बैठी लड़की जोर से चिल्लाई और उछल कर खड़ी हो गई। " भय्या, यँहा चूहा है। " उसने घबराते हुए अटेंडेंट को कहा जो बिस्तर बाँटने में व्यस्त था। "तो मैं क्या करूँ? " उसने उदासीनता से उत्तर दिया। मुझे लग रहा था कि ये तो उसके लिए कोई नई बात नहीं थी।

वो लड़की लगी भारतीय रेल को कोसने । मुझे लगा कि वो मुझे ही कोस रही है। इतने वर्षों की भारतीय रेल की सेवा  के पश्चात ये अभिन्नता स्वाभाविक है। मैं उठ कर उसकी बर्थ तक गया और उसे आशवस्त किया कि चूहा अब जा चुका है। पर वो बर्थ पर जाने को तैयार नहीं थी। मैने अटेंडेंट से कह कर पेस्ट कंट्रोल वाला बुलाया और कोच में दवा का  छिड़काव कराया।

भारतीय रेल चूहों के बिना अधूरी है। और राजधानी जैसी ट्रैन , जँहा मटर पनीर और चिकन पेट भरने को मिले , वँहा ये चूहे क्यों न हों। धड़ल्ले से वातानुकूलित ट्रैन में सफर करते हैं, और वो भी बिना टिकट। मज़ाल है कोई पकडे। और जब इतना सक्षम तंत्र फेल है तो मुझ गरीब की क्या औकात जो इन पर नियंत्रण कर पाऊँ।

पर हर पत्नी का ये अधिकार है कि पति को ऐसा काम दे जिसे वो कर न पाए। बोलीं, "मुझे नहीं पता, पिंजरा लगाओ और इन्हें पकड़ो।" पर उन्हें क्या पता कि पिंजरे को तो ये खूब पहचानते हैं। उसमें लगे खाने की तरफ तो झांकते भी नहीं। जब बाहर भरपूर मिल जाये तो रूखे सूखे की तरफ कौन जायेगा। मैं तो सोच रहा हूँ एक खूबसूरत ही चुहिया पिंजरे में बाँध दूँ। मुझे तो इनकी पूरी फौज क्वारी लगती है। विवाह के लिए प्रस्ताव लेकर तो पिंजरे में जायँगे ही। पर इनका कुछ ठीक नहीं है। हो सकता है बाहर से ही प्रेम निवेदन कर दें।

दूसरा उपाय हिंसक है। और मैं हिंसा में विश्वास नहीं रखता। इस उपाय में तरीका कोई भी हो, नतीजा मूषक की दर्दनाक मौत ही होती है। मेरा मानना है कि प्रभु की रची दुनियां में ये जीव भी हैं। ये कँहा जायें? आखिर इन्हें भी तो जीने का अधिकार है। अभी मुम्बई में इनका इतना उत्पात है कि सरकार एक चूहा मारने के 18 रूपये दे रही है। पुराना रेट 10 रुपया प्रति चूहा था पर इस रेट पर रैट मारने को कोई तैयार नहीं था। तो सरकार ने रेट बढ़ाये। अखबार की माने तो नगर पालिका के कर्मचारी रात में लाठी और टोर्च लेकर इस अभियान में लगे हुए देखे जा सकते हैं।

मुझे तो इतने में ही संतोष है कि हम जूनागढ़ वासियों से तो कंही अच्छे है। यँहा तो रात में उठने पर चूहे ही दीखते है, वँहा तो छह छह शेर कॉलोनी में घूमते दीखते है। कल्पना करता हूँ कि रात में बॉलकोनी में आता हूं और देखता हूं कि शेर वँहा पसरा हुआ है। न तो वापस जाने का रहा न ही खड़े  रहने का ! किसी ने पूंछा, कि जंगल में शेर मिल जाये तो आप क्या करेंगे? सामने वाला बोला, मैंने क्या करना है! जो कुछ करेगा शेर ही करेगा ।

इससे तो इन मूषकों की फ़ौज भली। कम से कम आप कुछ कर तो सकते है। और कुछ नहीं तो डरा कर भगा तो सकते हैं।  सोचता हूँ, शायद कोई बांसुरी वाला मिल जाये जो इन्हें लेकर मजनू के टीले तक छोड़ दे।  या फिर ये चूहे ही विवाह के बंधन में बंध जाये। फिर तो भीगी बिल्ली बन सब उत्पात छोड़ ही देंगे। तब तक तो ये उत्पात जारी रहेगा।

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