इस बार की दीवाली उदयपुर में मनी। उदयपुर दिल्ली की अपेक्षा एक शांत, सुरम्य, पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ मेवाड़ का एक छोटा शहर है। यँहा रंगोली सजाने की एक परम्परा है जो अभी भी जीवित है। दीपावली से एक दिन पूर्व लगभग सभी घरों के रेम्प लाल रंग से पोत दिए गए। फिर देर रात को जब मैं बाहर टहल रहा था, घर की स्त्रियां और बालाएं उस पर रंगोली बनाती नज़र आईं। सुबह दीवाली पर उठ कर देखा तो लगभग हर दूसरे घर के आगे तरह तरह की रंगोली बिभिन्न रंगों से चित्रित थी। दीवाली की रात जब सब और दीये जगमगा रहे थे ,तो एक दिया रंगोली के बीच भी रखा गया था।
दिल्ली की तुलना में यंहा पटाखों का शोर भी कम था और हवा भी कम जहरीली थी। यँहा आकाश में जलती हुई कंदीलें उड़ाने का भी रिवाज है। चाईनीज़ माल के बहिष्कार के चलते, हालाँकि कम कंदीलें उड़ती दीखी - पर फिर भी आसमान के अँधकार को चुनोती देती कुछ कंदीलें उड़ती नज़र आई।
रात भोजन के बाद मैं टहलने निकल पड़ता था। थोड़ी दूर चल कर ही कॉलोनी समाप्त हो जाती है और आ जाता है झामर- कोटड़ा हाई वे। झामर कोटड़ा खदानों के लिए जाना जाता है। उदयपुर के पास वैसे देबारी में भी खदाने है जंहा कच्चा जिंक निकलता है। बहुत समय पहले मैंने देबारी की एक जिंक प्रोसेस करने वाली फैक्ट्री हिंदुस्तान जिंक में जिंक बनाने की कार्य प्रणाली देखी थी।
मुझे रात को इस हाई वे पर आ कर अच्छा लगता है। सामने रोड साइड ढाबा है। जंहा इक्का दुक्का ग्राहक नज़र आते हैं। कभी कभी कोई वाहन तेज गति से निकल जाता है। हवा में ठंडक बढ़ गयी है। घूमते घूमते मैं फिर कॉलोनी की और आ जाता हूं। यंहा स्व पोषित वित्त योजना में मिले हुए मकान काफी विस्तृत हैं। लोगो ने बागवानी भी काफी कर रखी है। सेवा निवर्ति के उपरान्त यँहा बसा जा सकता है। एक ही समस्या यँहा मुझे नज़र आती है, वो है आधुनिक चिकित्सा सेवा का आभाव। कोई गंभीर बीमारी हो तो अहमदाबाद ही जाना पड़ेगा।
यंहा से लगभग 50 कि मी की दूरी पर जय समन्द झील है। भाई ने बताया कि यह मानव निर्मित सबसे बड़ी झील है। शाम के बाद यंहा जाने वाली सड़के निरापद नहीं रहती क्योंकि उन पर जंगली जानवर आ जाते हैं। समय आभाव के कारण हम यँहा नहीं जा पाए।
यँहा गली के तीन कुत्ते हैं जो रात भर जागकर अपनी पहरेदारी करते हैं। जिनमें से एक कुत्ता अफीमची है। ये नाम उसे मैंने दिया है। हमेशा नशे में ही लगता है। उसकी आँखों में मैंने देखा तो मुझे वह नशे में लगा। भाई का कहना है कि ये सारे दिन सोता है। सोते हुए इसके पैर नाली में लटक जाते हैं तब भी ये आलस्य के कारण उन्हें नहीं उठाता है। इस कारण मैंने उसका नाम "अफीमची" रख दिया। ये तीनो कुत्ते रात भर भोंकते रहते हैं और आप की नींद में विघ्न डालते हैं
आज गोवेर्धन पूजा को जो दीवाली के अगले दिन होती है, हवा दिल्ली की हवा के मुकाबले काफी साफ़ है। मुझे आज शाम लौटना है। तीन दिन का ये प्रवास, एक सुखमय ब्रेक लेने जैसा है।