Saturday, 14 January 2017

बतरस

नहीं पीने वालों के संग एक बड़ी दिक्कत है कि किसी भी पार्टी में वह अकेले पड़ जाते हैं। पर यँहा तो बिना पीये ही लीवर एन्जाइम बढे हुए है, पीते तो न जाने क्या होता। अपने राम तो अकेले ही भले। पीने में क्या मज़ा है ये तो पीने वाले ही जाने। हम पर तो "बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद" वाली उक्ति चरितार्थ होती है। वैसे मैं सोच रहा था कि बंदर यदि अदरक खा ले तो कैसा सा मुँह बनायेगा! पुराने किले के पास भैरों मंदिर है। वँहा रविवार को शराब प्रसाद के रूप में चढ़ती है। तरह तरह की ब्रांड एक बर्तन में डाली जाती है। वँहा के बंदर इस कॉकटेल को पी लेते हैं। फिर तो उनकी हरकतें देखते ही बनती हैं। उन्हें समझ ही नही आता की क्या हो रहा है।

वैसे शराब के अपने नुकसान है तो कुछ फायदे भी हैं। पीने के बाद आदमी सातवें आसमान पर होता है। और सातवें वेतन आयोग पर जी खोल के बोल सकता है। हमारे एक मित्र का कहना है कि दो पैग लगाने के बाद अपनी बीबी भी अप्सरा लगने लगती है। गोया दो पैग आपको सीधे इंद्र के दरबार में ले जाते है। अब इनसे पूछिये कि क्या इंद्र के दरबार की अप्सरा भी उतनी वफ़ादारी से अपना कर्तव्य आपके प्रति और आपके परिवार के प्रति निभा पाती जितनी वफ़ादारी से आपकी पत्नी ने निभाया है। अरे भई फिर पत्नी को पत्नी ही रहने दो, अप्सरा क्यूं बनाने पर तुले हो। या फिर सीधे सीधे कहो कि पीने का बहाना चाहिए।

खैर पीना या न पीना अपनी अपनी व्यक्तिगत रूचि पर निर्भर है। हमारा तो ये मानना है कि जो पी कर खुश हैं वह पी कर खुश रहें। और जो न पीकर खुश है वो बिना पीये खुश रहें। बस खुश रहो जैसे भी रहो। मकर संक्रांति की मंगल कामनायें सभी के लिये।

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