Saturday, 27 January 2018
Canada Diary - 09.12.2017
Sunday, 21 January 2018
Canada Diary - 07.12.2017
Sunday, 14 January 2018
फुल पैंट
"हाथ आगे कर!", सामने डंडा लेकर खड़े मास्टर जी का स्वर आदेशात्मक था।
उसने डरते हुए अपनी नन्ही हथेली फैला दी।
स्टाक की आवाज के साथ छड़ी चली।
वो हाथ झटकने लगा।
"दूसरा हाथ दे।" स्वर कड़ा था।
उसने बिना विरोध के दूसरी हथेली भी पसार दी।
छड़ी फिर चली और हथेली पर लाल निशान छोड़ गई। वो दोंनो हाथ झटक कर दर्द कम करने का प्रयास करने लगा।
"हीरो बनता है! कितने दिन से कह रहा हूँ। कक्षा 6 से फुल पैंट पहन कर आनी है। समझ नहीं आता।"
"कल अपने पिता जी को बुला कर लेना।", कहते हुए मास्टर जी ने उसके कूल्हों पर एक ओर छड़ी मार दी और उसे कक्षा की और धकेल दिया।
बिलख उठा था वह। आंखों में आंसू झलक आये थे।मात्र ग्यारह वर्ष की तो उम्र थी। नन्ही कोमल हथेलियां छड़ी की मार से सूज जाती थीं। पहले दिन जब छड़ी पड़ी थी तो बहुत दर्द हुआ था। अब तो ये रोज़ की बात हो गई है। दर्द तो अभी भी होता है। पर अब वो जानता है कि कितना दर्द होगा। बहुत बहादुर बनता है कि रोयेगा नहीं। पर आँखों की कोर गीली हो ही जाती है।
बच्चों के ताने तो वह सह लेता था। पर ये रोज़ रोज़ की सज़ा अब नहीं सही जाती थी। अब वह मास्टर जी को कैसे समझाए कि उसके पास फुल पैंट नहीं है। कब से माँ से कह रहा है कि एक फुल पैंट बनवा दो। माँ का एक ही जवाब था जल्द बनवा दूंगी। बस कुछ दिन और काम चला ले।
"नहीं, बस अब नहीं।", उसने कक्षा की और जाते हुए मन बनाया। कल से वह स्कूल नहीं आएगा। अब तभी आएगा जब उसके पास फुल पैंट होगी। कोई समझता ही नहीं।
फिर उसे याद आया कि कल पिता जी को स्कूल भी लाना है। उसे अच्छी तरह से पता था कि वह नहीं आएंगे। फिर भी माँ को कहेगा जरूर। उसका सारा संवाद माँ से ही होता था। पिता का डर इतना था कि बोलने की हिम्मत ही नहीं पड़ती थी। पिता से भी माँ के माध्यम से ही संवाद होता था। जब कभी पिता मारते तो माँ झट से अपने आँचल में छिपा लेती। उसे लगता वो अब सबसे सुरक्षित है।
घर के माली हालात उससे छिपे नहीं थे। समय पर कभी स्कूल की फीस भी जमा नहीं हो पाती थी। पिताज़ी फीस माफी की अर्ज़ी दे सकते थे पर ये उनकी इज़्ज़त का सवाल था। हर महीने की दस तारीख़ उसके लिए अपमान और ज़िल्लत लिए आती। उसे क्लास से बाहर निकाल दिया जाता और घर जा कर फ़ीस लाने को कहा जाता। वो भी स्कूल के आसपास भटकता रहता। उसे मालूम था कि घर जाकर क्या होगा। पैसे होते तो क्या माँ सुबह ही नहीं दे देती।
पुरानी किताबों से वह पढ़ता था। एक ही कापी को आधी हिन्दी विषय की और आधी इतिहास विषय की बना लेता था। जब हिंदी का होम वर्क चैक कराना होता तो वही खोल कर दिखा दिया करता था इतिहास के विषय मे भी ऐसा ही करता था। कहते हैं आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है। उसकी हर विषय की अलग कॉपी की आवश्यकता ने और पर्याप्त कॉपी न ख़रीद सकने की मजबूरी ने उसे ये अविष्कार करना सीखा दिया था। आफ़त तो तब आन पड़ी, जब इतिहास के मास्टर जी ने सब बच्चों की कॉपियां इकठ्ठी कर लीं और लाइब्रेरी में जाकर जांचने लगे थे। क्लास में आकर उन्होंने पहले तो कापी फ़ेंक कर मुँह पर मारी थी । फिर जो छड़ी से धुनाई हुई थी, तड़प गया था वह।
हर छड़ी के वार के साथ वो चिल्ला रहे थे, "ज्यादा होशियार बनता है। मास्टर को बेबकूफ़ समझता है।" उसका ये अविष्कार अधिक दिन तक नहीं चल पाया था। ऐसी स्थिति में फुल पैंट की मांग कँहा से पूरी होती।
वो घर आया तो पक्का मन बना चुका था कि कल से स्कूल नहीं जाएगा। माँ ने हाथ धुलवाते समय उसकी छोटी हथेलियां देखी थी।
"दिखा, आज फिर मार पड़ी?"
माँ ने लाल लाल निशानों को सहलाया तो दर्द उसके चेहरे पर आ गया।
"बुरा हो उस मरे मास्टर का। रोज़ मारता है। पर तू इतना दंगा क्यों करता है क्लास में?"
उसने माँ को अभी तक नहीं बताया था कि वह कोई दंगा नहीं करता। मार उसके हाफ पैंट पहनने से पड़ती है।
पर आज वो सुबक उठा था, "मैं क्लास में कोई दंगा नहीं करता हूं माँ।"
"फिर ये मार क्यूँ पड़ी? मास्टर का दिमाग थोड़ी खराब है, जो बिना बात मारेगा।"
"हाफ पैंट पहनने की सज़ा मिलती है माँ। रोज़ सुबह मिलती है। कब से कह रहा हूँ कि एक फुल पैंट बनवा दो।"
माँ ने अपने सीने से चिपटा लिया , "अरे मेरे बच्चे! तूने बताया क्यों नहीं अब तक। मैं कँही से भी करती तेरी फुल पैंट बनवाती।"
"कँहा से बनवाती, माँ। मुझे क्या पता नहीं है। घर कैसे चल रहा है। तीन महीने से मकान का किराया तो हम दे नहीं पा रहे हैं।"
"तू न ऐसी बड़ो जैसी बातें न किया कर ", माँ ने सीने से दूर करते हुए कहा।
"तू अपना ध्यान पढ़ाई में लगा। तू पढ़ लिख जाएगा न, सब कुछ ठीक हो जाएगा।'
"पर माँ, मैं कल से स्कूल नहीं जाँऊगा। जब फुल पैंट आ जायेगी तभी जाऊंगा। और मास्टर जी ने पापा को भी बुलाया है कल स्कूल।"
"मैं चलूंगी न कल तेरे साथ।"
"नहीं माँ मैं तुम्हें नहीं ले जाऊंगा।'
"चल शाम को तेरे पापा आयेंगे तो बात करूंगी।"
"अरे उठ ! कब तक सोता रहेगा। दीया बाती का समय हो गया है", तुलसी पर शाम का दीया जलाते हुए माँ ने आवाज़ दी।
"देख पापा आते ही होंगे। सोता देखेंगे तो नाराज़ होंगे। चल उठ जा। होम वर्क भी तो करना है।"
वह आंखे मसलता उठ बैठा, "मैंने कहा था न कल से मैं स्कूल नहीं जाऊंगा।"
"हाँ हाँ ,ठीक है मत जाना। पर होम वर्क तो कर ले।"
माँ सोचती है कल सुबह मुझे समझा बुझा कर हाफ पैंट में स्कूल भेज देगी। पर मैं जाऊंगा ही नहीं। उसने मन पक्का कर लिया।
तभी पापा आ गए।बैठते ही बोले थे, "तुम कई दिन से कह रही थी न इसके लिए फुल पैंट बनवानी है। आज मुझे नई वर्दी मिल गई है। सोचता हूं पुरानी वर्दी की खाकी पैंट से इसकी पैंट निकलवा दूँ। एक आध साल तो चल ही जाएगी। इससे कहो तैयार हो जाये। चल कर दर्ज़ी को नाप दे आएंगे। दो एक रोज़ में बना देगा।"
उसको तो लगा मानो पुरानी पैंट नहीं संसार का खजाना पा लिया हो। तुरन्त तैयार हो गया। वह कल स्कूल जाएगा। एक दो दिन की ही तो बात है। मार खा लेगा।
जल्द ही उंसके पास भी स्कूल ड्रेस की फुल पैंट होगी। उसकी उमंग उसकी चाल से झलक रही थी। माँ के चेहरे पर फीकी सी मुस्कराहट आई और चली गई। पर इससे पहले उसने कनखियों से माँ की वो मुस्कराहट देख ली थी।