आखिर ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है? माना कि प्रभु की दुनियां रंग बिरंगी है, पर ये विभिन्न रंग मुझे ही क्यों गाहे बगाहे दीख पड़ते हैं? या हो सकता है, मैं कुछ ज्यादा ही ध्यान देता हूँ आस पास की घटनाओं पर।
कल ही की बात है, किसी कार्य वश बाजार जाना हुआ। जलेबियां लेनी थीं। हलवाई ने कहा, घान उतर रहा है थोड़ा समय लगेगा। यदि आपको कोई और कार्य हो तो कर आइये। मुझे याद आया कि मेरे पास सैंडो बनियान नहीं हैं। आधी बाजू की कमीज या टी शर्ट से बनियान की बाहर झांकती बाज़ू से मुझे असहजता होती थी। सर्दियां गए कितना समय हुआ पर अभी तक सैंडो बनियान नहीं आई। सोचा, आज मौका है, यही काम करते हैं।
सो पँहुच गया पास की होज़री शॉप पर। वँहा एक पति पत्नी पहले से मौजूद थे। उनकी बातचीत से पता लगा कि पति को अंडरवियर लेने थे। पर पति बेचारा पीछे खड़ा था और श्रीमति जी मोल भाव कर रही थीं। कई सारे मर्दाने अंडरवियर काउंटर की शोभा बढ़ा रहे थे, पर श्रीमति जी को कोई पसंद ही नहीं आ रहा था।
"अच्छा, यूरो है क्या आपके पास?"
"देखता हूँ।" कहते हुए दुकानदार पीछे मुड़ा, और मुझे "यूरो" अंडरवियर का विज्ञापन याद आ गया।
"नहीं, बहनज़ी, "यूरो" तो नहीं है।"
दुकानदार के चेहरे पर झल्लाहट नज़र आ रही थी।
"अच्छा, तो इसी में कलर दिखाओ।" एक जाना माना ब्रांड उठाते हुए वह बोलीं।
इस बार हिम्मत कर पति ने मुँह खोला, "इसमें व्हाइट मिलेगा?"
इस पर दुकानदार झल्ला उठा,"अरे मेरे भाई, व्हाईट कलर अंडरवियर में नहीं आता "
"पर वो डिब्बे पर तो उसने पहना है।"
"पहना होगा। मेरे पास नहीं है।" कह कर वह मेरी तरफ मुखातिब हुआ।
"हाँ भाई साहिब, आपके क्या चाहिए ?"
उसे जवाब देते हुए, कनखियों से मैं देख पा रहा था कि अपने लिए अंडरवियर खरीदने में बेचारे पति की एक नहीं चल रही थी। कलर, ब्रांड और साईज़ सब उनकी श्रीमति जी तय कर रही थीं। और वह महाशय, भीगी बिल्ली बन पीछे खड़े बगले झांक रहे थे।
"बेचारे मर्द! " यही दो शब्द थे, जो बनियाने लेकर बाहर आते हुए मेरे मुँह से निकले थे।
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