चातुर्मास चल रहा है। 12 जुलाई, 2019 से प्रारंभ हो कर, कार्तिक मास में 9 नवम्बर, 2019 को समाप्त होगा। इन दिनों संत, मुनि, साधु, भिक्षु आदि जो शेष 8 माह भृमण करते हैं, एक स्थान पर ठहर जाते हैं। नदियां उफनती हैं, मेघ बरसते हैं। स्थान स्थान पर जल प्रलय सी होने लगती है। ऐसे में जल प्लावित स्थानों का भृमण न करके किसी एक सुभीते की जगह पर रुक जाना हर दृष्टि से ठीक लगता है। पर संतो का ये ठहराव मात्र इसलिए नहीं है कि इन दिनों यात्रा सुगम नहीं। ये तो हमें बस दिखता है। इस ठहराव का एक आध्यात्मिक कारण भी है । ये समय है अंतर्मुखी होने का। स्वयं से संवाद का। स्वयं को जानने की एक प्रक्रिया है ये ठहराव।
मेरी समझ में ये रुकना, ये ठहराव हम सभी की जिंदगी में आवश्यक है। पर हम कँहा रुकते हैं। हमारा तो मानना है कि रुकेंगे तो पीछे रह जाएंगे। बिना ये जाने कि जीवन में रुक कर स्वयं से संवाद उतना ही आवश्यक है जितना श्वास लेना। पर हमें कँहा किसी ने ये समझाया। कब किसने ये बताया कि स्वयं से संवाद कैसे होता है और कितना आवश्यक है! बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ लीं। तथा कथित उच्च संस्थानों से डिग्रियां हांसिल कर लीं। पर इन सबसे क्या लाभ हुआ। हम पैसे कमाने की मशीन मात्र बन कर रह गए। जीवन का एक मात्र उद्देश्य पैसा ही बन कर रह गया। हम भागते रहे पैसा, और अधिक पैसा बनाने को। क्योंकि हमें सिखाया ही ये गया। और हमने पैसे की ताक़त को परखा और पाया कि हमारी शिक्षा ठीक ही तो थी। पैसा है तो सब कुछ है। भौतिकता के सभी साधन आपको उपलब्ध हैं। वरन आप हैं क्या - धरती पर रेंगते कीड़े मकोड़े!
त्याग, वैराग्य , दान इन सब को और इनसे मिलने वाले सुख को हमने जाना ही कँहा। इन्हें तो वो ही जान सकता है जो इन के लिए ही जीता हो। जिसे इनका चस्का हो। वरना क्या कारण है कि श्री राम ने राज पाट त्याग दिया। भरत जी ने अयोध्या के बाहर कुटी डाल 14 वर्ष का संन्यास स्वीकार किया। राजकुमार सिद्धार्थ भरा पूरा राजपाट और सुन्दर पत्नी को त्याग सत्य की खोज में चले गए। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं।
चातुर्मास के नियम इसी को बल देते हैं। स्वयं का स्वयं से संवाद। जीव का आत्मा से संवाद। मैं कौन हूँ? संसार में क्यों आया हूँ? इससे पूर्व मैं कँहा था? और इसके बाद मैं कँहा जाऊंगा? ये चार प्रश्न यक्ष प्रश्न हैं। हम में से कितने ये प्रश्न स्वयं से करते हैं? कितने इनका उत्तर खोजने का प्रयत्न करते हैं? जब से संसार में आयें हैं, भाग रहे हैं श्वासों की सड़क पर। भागते भागते एक समय आता है जब ये सड़क समाप्त हो जाती है। आगे रास्ता बंद हो जाता है। सामने गहरी खाई दिखती है और चाहे अनचाहे उस में हम धकेल दिए जाते हैं।
इस भाग दौड़ में जो एकत्र किया सब यंही छूट जाता है। इसीलिए थोड़ा रुक के स्वयं से संवाद आवश्यक है। अभी तक नहीं रुके तो अब ठहर जाओ। चातुर्मास चल रहा है। रुको, स्वयं से संवाद करो। फिर जब दुबारा से भागना शुरू करोगे, तो भाग नहीं पाओगे। सधे कदमों से चलोगे अपने गंतव्य की और। जँहा वैराग्य का महत्व है, त्याग का सुख है, दानशीलता है । तभी अपने को सार्थक मानोगे।जीवन को मायने दे पाओगे।