Tuesday, 31 March 2020

तीर्थ यात्रा और कोरोना

गुप्ता जी जब से मथुरा वृन्दावन का एक सप्ताह का ट्रिप लगा के आये थे, बहुत खुश लग रहे थे। श्रीमती जी उनकी इस प्रसन्नता पर कुछ हैरान तो कुछ परेशान सी थीं। कितना कहा था कि मुझे भी साथ ले चलो। पर नहीं, अभी तो तुम्हारे घुटनों का ऑपेरशन हुआ है ज्यादा चलना फिरना ठीक नहीं, कह कर टाल गए। और चल दिये अकेले। कहा था कम से कम रोज फ़ोन तो कर देना पर कहाँ सुनते हैं। गए तो ऐसे गए कि वापस आने पर ही आवाज़ सुनाई दी। आख़िर कुछ तो होगा उस पवित्र स्थल में जो गुप्ता जी जैसे व्यक्ति इतने प्रसन्न रहने लगे थे । कल ही कह रहे थे कि वर्ष में एक बार तो जाना बनता है। आखिर ये रिटारमेंट के पैसे किस काम के जो आखिरी वक्त में धर्म कर्म नहीं किया। 

अभी देखो सुबह के 11 बजे हैं और साहब सो रहे हैं। रात में पता नहीं किस किस से वीडियो चेटिंग करते रहते हैं। जब से वृन्दावन से आये हैं, सोना भी अलग कमरे में शुरू कर दिया है। कहते हैं मैं देर रात तक जागता हूँ  तुम्हारी भी नींद खराब होती है। तुम्हें सुबह जल्दी उठना होता है इसलिए मैं दूसरे कमरे में सो जाऊंगा। 

गुप्तानी अभी मन ही मन बड़बड़ा रही थी कि दरवाज़े की घन्टी खनखना उठी। ये लॉक डाऊन में कौन मरा आ धमका! इन्हें तो कोई लेना देना है नहीं।

"अजी सुनते हो?" गुप्तानी ने जोर से गुप्ता जी को आवाज़ दी।
"जरा देखो तो, दरवाज़े पर कौन है"?

गुप्ता जी ने सुना अनसुना कर दिया। तकिया मुँह पर रखा और करवट बदल कर लेटे रहे।

"ये तो किसी काम के नहीं हैं। मैं ही देखूं।" बड़बड़ाते हुए गुप्तानी उठी । अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए दरवाज़ा खोला, तो बाहर दो अजनबी खड़े थे।
"जी, कहिये! किससे मिलना है?"
"त्रिभुवन दास जी का घर यही है?", एक ने पूछा।
"जी, बताइए?"
"गुप्ता जी घर पर ही होंगे?"
"जी, सो रहे हैं। कहिये?"
"आप?"
"मैं उनकी धर्मपत्नी, नंदनी  गुप्ता।"
"देखिए, हम भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग से आये हैं। क्या आपके पति 20 फरवरी से 27 फरवरी तक टूर पर थे?"
"जी, मथुरा वृन्दावन गए थे।"
"पर हमारी जानकारी के हिसाब से इस दौरान वह बैंकाग, पटाया और मकाऊ में थे।"
"देखिए, आपको कोई गलतफहमी हुई है।"
"मैडम, कोई गलतफहमी नहीं हुई है। ये थाई एयरवेज़ से ली गई डिटेल्स है। ये उनका पासपोर्ट नम्बर है और ये उनका मोबाइल नम्बर और पता है जँहा हम खड़े हैं। हम दो दिन से उनसे संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं पर उनका मोबाइल बंद पड़ा है।"
गुप्तानी को जमीन घूमती दिखाई दी। इतना बड़ा धोखा! सूखे गले से वो इतना ही पूंछ पाई,"क्या वो अकेले गए थे?"
"जी नहीं। उनके पी एन आर पर उनके अतिरिक्त एक अन्य महिला भी थी- जहान्वी वर्मा।"
"क्या?", गुप्तानी इतना ही कह सकी फिर धम्म से  दरवाज़े पर ही बैठ गई।
"उन्हें बुलाइये। उन्होंने अपनी ट्रेवल हिस्ट्री छिपाई है। हमें उन्हें 14 दिन तक बिल्कुल अलग थलग रखना है। और आपका भी टेस्ट होगा। आपको पता नहीं क्या, कोरोना वायरस किस कदर फैल रहा है!"
और गुप्ता जी जो थाईलैंड के स्वप्निल संसार में खोये थे इस बात से बिल्कुल अनिभिज्ञ थे कि पिछले दस मिनटों में कोरोना ने उनकी जिंदगी कितनी बदल दी थी। बाहर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती नंदनी  गुप्ता अपने समस्त आयुधों को धारण कर  दुर्गा का रूप धारण कर चुकी थी।

Monday, 23 March 2020

कोरोना और लॉक डाउन

जीवन के 61 वर्षों में ऐसी स्थिति कभी न देखी थी। लॉक आउट तो सुना था पर लॉक डाउन कभी नहीं सुना था। खैर जब हो ही गया है, तो घर में बंद रहने के सिवाय चारा भी क्या है। पिछले तीन सप्ताह से सोशल मीडिया पर इतनी पढ़ाई कर ली कि कोरोना वायरस पर एक शोध पत्र लिखा जा सकता है। 

इतना ही नहीं, ये भी पता चला कि थाली, घन्टी और शंखनाद से खेतों में विषाणु नष्ट हो जाते हैं। वो बात अलग है कि दिल्ली जैसे महानगर में खेत खलिहान बचे ही कितने हैं। मुझे व्यक्तिगत रूप से इन जीवाणुओं और विषाणुओं में कोई दिलचस्पी नहीं है। ये जिनका क्षेत्र है वह ही जाने। बहरहाल हाथ धोये जा रहा हूँ। 

वैसे हमारे परिवार में हाथ धोने की पुरानी परम्परा है। बचपन में माँ हाथ धुलवाती थी अब पत्नी धुलवाती है। धुले हाथ भी धुलवा ही देती है। पीछे से यदि हाथ गीला न हो तो उसका मानना है कि हाथ धुले ही नहीं। कई बार तो मैं खीझ भी जाता हूँ कि कहो तो कंधे तक धो लूं! 

मैं कोरोना वायरस पर कुछ नहीं लिखूंगा ये मैंने सोचा है। अरे, न तो मैं कोई चिकित्सक हूँ और न ही माइक्रोबायलॉजी के क्षेत्र से हूं। मैं तो सरल ह्रदय लेखक हूँ जिसे अपने आस पास की प्रकृति बहुत सुहाती है। जिसे वर्षा से पहले धरा से उठती मिट्टी की सुगंध नासा छिद्रों में गहरे तक भरना बहुत आनन्दित करता है। जिसे फूल,तितलियाँ, भँवरे अच्छे लगते है। जो अभी भी , जीवन की संध्या में भी , एक बच्चा ही है। जिसे सुबह सुबह उगते सूर्य की लाली भाती है। चंद्रमा की शीतलता जिसे भीतर तक शीतल कर देती है। जो प्रभु की इस प्रकृति को जी भर के आत्मसात करना चाहता है। मुझे इन विषाणुओं और जीवाणुओं से क्या काम! 

घर में बंद रहना भी एक सज़ा सी है। मुझे सोना बहुत पसंद है। तकिया मुँह पर डाल कमरे में अंधेरा कर, अपनी कल्पना के संसार मे विचरते हुए मैं कब निद्रा में लीन हो जाता हूँ पता ही नहीं चलता। पर सोया भी जाये तो कितना? दिन में सो लूँ तो रात्रि में नींद नहीं आती। फिर मैं अपना कैमरा निकाल लेता हूँ और बाहर कॉलोनी में आ जाता हूँ। पर फ़ोटोग्राफ़ी के लिए भी तो नई नई लोकेशन चाहिए। वो ही फूल, वो ही पेड़, वो ही पौधे, वो ही पक्षी और वो ही बन्दर। आख़िर कोई कितनी फ़ोटो खींचे? कुछ ही देर में कैमरा वापस रख देता हूँ। 

फेस बुक खोलो या व्हाट्सएप सब कोरोना से संक्रमित हैं। आख़िर करें क्या? ये एक बड़ा प्रश्न है। सोचता हूँ, कुछ समय बाद तो ये सामान्य दिनचर्या हो जाने वाली है। रिटायरमेंट के बाद तो लॉक डाउन होना ही है। बस बाहर निकलने पर प्रतिबंध नहीं होगा। और न ही होगा कोरोना का भय। तब की तब सोचेंगे। अभी तो पलकें भारी हो रही हैं। एक झपकी ले ली जाए। 

बाहर कोई पक्षी बहुत ही मीठे स्वर में बोल रहा है। मानो लोरी सुना रहा हो। ऐसा ही सन्नाटा है। माँ की गोद में साडी का पल्लू ढके मैं सोने का उपक्रम कर रहा हूं। माँ धीरे धीरे थपकी दे रही है। चन्दा मामा दूर के ..उसकी लोरी जारी है। पास कँही कोई हैंड पम्प चला रहा है। पलके बोझिल हैं और मैं सो गया हूँ। स्वपन जारी है....

Tuesday, 10 March 2020

जीवन चक्र

घने पेड़ की पत्तियों में छिपा एक खोंसला था। बहुत ध्यान से देखें तो ही नजर आ पाता था। निरापद, मौसमी आपदाओं से सुरक्षित। एक छोटी सी चमकीली चिड़िया का परिवार आ बस था। मादा खोसलें को और नरम बनाने के लिए कपास के फूल ले आती। नर उन फूलों से कपास निकाल के घोसलें में बिछाता। पेड़ की घनी पत्तियां उस को धूप, आंधी और वर्षा से बचाती। एक और से अंदर जाने का मार्ग था तो दूसरी और से बाहर आने का। समय पर चिड़िया ने अंडे दिए। थोड़े दिनों में उनमें से नन्हें बच्चे निकले। बिना फर के आंखे बंद किये। जब क्षुधा सताती तो छोटी सी चोंच खोल कर चीं चीं करते। चिड़िया जब दाना लेने जाती तो नर नन्हें बच्चों की रखवाली करता। नर और मादा बारी बारी से उड़ते, मेहनत करते और आस पास से बच्चों के लिए भोजन का प्रबंध करते। अब बच्चों के फर आ गए थे। आंखे खोल वे अपने बाहर का संसार देखेने लगे थे। नीला अम्बर, घना पेड़, हरियाली और सुंदर प्रकृति उनका मन मोहने लगी थी।कुछ दिन में उनके पर आ गए। मां ने उन्हें उड़ना सिखाया। कुछ दिन में वे उड़ने में पारंगत हो गए। एक दिन जो वो उड़े तो लौटे नहीं। उन्होंने अब अपना सँसार बसा लिया था। समय बदला। पतझड़ आया। पेड़ ने अपने सारे पत्ते गिरा दीए। खोंसला अब निरापद नहीं रहा था। प्रकृति ने जो सुरक्षा प्रदान की थी वो अब नहीं थी। घोंसला अब खाली हो गया था। जल्द ही पेड़ पर नयी कोपलें आएंगी। एक बार फिर से समय चक्र घूमेगा।पेड़ फिर से हरा भरा हो जाएगा। और खोंसला एक नए जोड़े की प्रतीक्षा में रहेगा।
सोच के देखिए क्या ये लघु कथा मानव जीवन चक्र की कथा तो नहीं!