सोच के देखिए क्या ये लघु कथा मानव जीवन चक्र की कथा तो नहीं!
Tuesday, 10 March 2020
जीवन चक्र
घने पेड़ की पत्तियों में छिपा एक खोंसला था। बहुत ध्यान से देखें तो ही नजर आ पाता था। निरापद, मौसमी आपदाओं से सुरक्षित। एक छोटी सी चमकीली चिड़िया का परिवार आ बस था। मादा खोसलें को और नरम बनाने के लिए कपास के फूल ले आती। नर उन फूलों से कपास निकाल के घोसलें में बिछाता। पेड़ की घनी पत्तियां उस को धूप, आंधी और वर्षा से बचाती। एक और से अंदर जाने का मार्ग था तो दूसरी और से बाहर आने का। समय पर चिड़िया ने अंडे दिए। थोड़े दिनों में उनमें से नन्हें बच्चे निकले। बिना फर के आंखे बंद किये। जब क्षुधा सताती तो छोटी सी चोंच खोल कर चीं चीं करते। चिड़िया जब दाना लेने जाती तो नर नन्हें बच्चों की रखवाली करता। नर और मादा बारी बारी से उड़ते, मेहनत करते और आस पास से बच्चों के लिए भोजन का प्रबंध करते। अब बच्चों के फर आ गए थे। आंखे खोल वे अपने बाहर का संसार देखेने लगे थे। नीला अम्बर, घना पेड़, हरियाली और सुंदर प्रकृति उनका मन मोहने लगी थी।कुछ दिन में उनके पर आ गए। मां ने उन्हें उड़ना सिखाया। कुछ दिन में वे उड़ने में पारंगत हो गए। एक दिन जो वो उड़े तो लौटे नहीं। उन्होंने अब अपना सँसार बसा लिया था। समय बदला। पतझड़ आया। पेड़ ने अपने सारे पत्ते गिरा दीए। खोंसला अब निरापद नहीं रहा था। प्रकृति ने जो सुरक्षा प्रदान की थी वो अब नहीं थी। घोंसला अब खाली हो गया था। जल्द ही पेड़ पर नयी कोपलें आएंगी। एक बार फिर से समय चक्र घूमेगा।पेड़ फिर से हरा भरा हो जाएगा। और खोंसला एक नए जोड़े की प्रतीक्षा में रहेगा।
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