इन दिनों जब विश्व कोरोना महामारी से त्रस्त है, एक संदेश खूब वायरल हो रहा है जिसमें श्री रामचरितमानस के उत्तरकांड की निम्न चौपाइयों के माध्यम से अनर्गल व्याख्या करते हुए ये कहा जा रहा है कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने कोरोना की भविष्यवाणी तब ही कर दी थी। संदेश कुछ इस प्रकार से है:
"रामायण के दोहा नंबर 120 में लिखा है जब पृथ्वी पर निंदा बढ़ जाएगी पाप बढ़ जाएंगे तब चमगादरअवतरित होंगे और चारों तरफ उनसे संबंधित बीमारी फैल जाएंगी और लोग मरेंगे और दोहा नंबर 121 में लिखा है की एक बीमारी जिसमें नर मरेंगे उसकी सिर्फ एक दवा है प्रभु भजन दान और समाधि में रहना यानी लोक डाउन।"
और यह संदेश शिक्षित व्यक्ति भी बिना सोचे समझे, धड़ाधड़ आगे प्रेषित करते चले जा रहे हैं। जिन चौपाइयों और दोहे को इस संदेश से जोड़ा गया है वह मैं नीचे दे रहा हूँ।
सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं॥
सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दु:ख पावहिं सब लोगा॥
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा।।
एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि।
पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि॥
एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी॥
मानस रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेन्ह पाए॥
मैं कोई मानस का मर्मज्ञ तो नहीं पर बचपन से मानस पढ़ता रहा हूँ इसलिए इतना अवश्य जानता हूँ कि इस संदेश में इन चौपाइयों को कैसे तोड़ा मरोड़ा गया है। आइए इस का संदर्भ देखते हैं। उपरोक्त चौपाइयां उत्तरकाण्ड से उधृत हैं। प्रस्तुत प्रसंग में कागभुशुण्डि और गरुड़ जी आपस में संवाद कर रहे हैं। गुरुड़ जी द्वारा निम्न सात प्रश्न किये गए;
1 सबसे दुर्लभ शरीर कौन सा है?
2 सबसे बड़ा दुःख कौनसा है?
3.सबसे बड़ा सुख कौनसा है?
4.संत और असंत का मर्म क्या है?
5.महान पुण्य कौनसा है?
6.सबसे भयंकर पाप कौनसा है?
7. मानस रोग कौन कौन से हैं?
इन्हीं का उत्तर देते हुए छटवें प्रश्न के उत्तर में काकभुशुण्डि जी कहते हैं कि परनिन्दा के समान कोई पाप नहीं है। आगे इसका फल बताते हुए वे बताते हैं कि गुरु की, शंकर जी की, ब्राह्मणों की, देवताओं की, वेदों की और संतो की निंदा करने वाले मनुष्य किस किस योनि में जन्म लेते हैं। (ये इन चौपाइयों में नहीं है) और अंत में कहते हैं कि वो मूर्ख मनुष्य जो उपरोक्त सभी की निंदा करते हैं, वह अगले जन्म में चमगादड़ योनि में जन्म लेते हैं। (ये सबसे निकृष्ट योनि मानी गई है।) इसके बाद कागभुशुण्डि जी अंतिम प्रश्न का उत्तर देते हुए बताते हैं कि मानसिक रोग कौन कौन से हैं जिनसे सब दुःख पाते हैं। कहते हैं कि सब मानस रोगों की जड़ अज्ञान ही है अज्ञान से और बहुत सी मानसिक व्याधियां जन्म लेती हैं। (आगे मानसिक रोगों को समझाने के लिए शारीरिक व्याधियों से तुलना करते हैं।) काम जो है उसे वात जानो, और लोभ को कफ़ समझो। क्रोध तो मानो पित्त ही है जिससे सदा छाती जलती रहती है। (आयुर्वेद सभी शारीरिक रोगों की जड़ में कफ़, वात और पित्त की बात करता है। जब तक ये तीनो सामंजस्य में रहते हैं, मनुष्य स्वस्थ रहता है। इनमें से एक भी बिगड़ जाए तो शरीर में रोग की उत्तपत्ति हो जाती है। इन्हीं को इंगित कर गोस्वामी जी मानसिक रोग समझा रहे हैं।) आगे कहते हैं और यदि ये तीनों - काम, क्रोध और लोभ मिल जाएं तो भयंकर सन्निपात रोग हो जाता है। (अर्थात मनुष्य अपने होश खो बैठता है।) आगे बताते हैं कि जितनी भी कामनाएं हैं, ये कभी न खत्म होने वाली हैं। ये अनन्त, अधूरी कामनाएं मनुष्य को शूल सी चुभती रहती हैं। इस संसार में एक ही (शारीरिक) रोग से मनुष्य मर जाता है तो फिर ये मानसिक रोग तो असाध्य हैं। ऐसी दशा में मनुष्य शान्ति (समाधि) को कैसे प्राप्त कर सकता है? आगे कहते हैं कि ये मैंने कुछ मानस रोग बताए हैं जो संसार में हैं तो सबको परन्तु इन्हें जान कोई बिरला ही पाया है।(देखा जाय तो संसार मे सभी काम, क्रोध और लोभ से ग्रस्त हैं। पर मनुष्य इन्हें रोग मानता ही नहीं। और जब मानता ही नहीं कि वह रोगी है तो इनकी औषधि क्यों कर करेगा।) आगे इनकी औषधि बताते हुए कहते हैं कि यदि ऐसा संयोग बने कि मनुष्य पर प्रभु राम की कृपा हो और उसका अज्ञान नष्ट हो जाये जो समस्त विकारों की जड़ है तभी ये सारे रोग नष्ट हो सकते हैं।
ये तो हुआ उपरोक्त चौपाइयों का भावार्थ। कोई मानस मर्मज्ञ ही इनकी विस्तृत व्याख्या कर सकता है। परन्तु यँहा उसकी आवश्यकता नहीं है। अब देखिए इन चौपाइयों और दोहे का क्या ही अनर्थ किया है। चमगादड़ का नाम देखते ही उसे करोना से जोड़ दिया। और समाधि को लॉक डाउन बना दिया। प्रबुद्ध जनों से मेरा निवेदन है कि बिना जाने समझे इस तरह के संदेश आगे न प्रेषित करें। मानस की प्रत्येक चौपाई मन्त्रवत है। उसका ऐसा घोर अनर्थ करना सर्वथा अनुचित है।
भावार्थ की अशुद्धियों के लिए ज्ञानीजन मुझे क्षमा करें। प्रभु से प्रार्थना है कि विश्व को जल्द रोग मुक्त करें जिससे मानव कल्याण हो।