Saturday, 11 April 2020

बेमतलब

रात आधी बीत चुकी है। सोने के सारे उपक्रम नाक़ाम रहे हैं। बेड रूम से ड्राइंग रूम और पुनः बेड रूम कई बार स्थान परिवर्तन कर लिया कि कहीं तो नींद आएगी पर  कम्बख़्त नींद है कि पता नहीं कहाँ नदारद है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पर आज तो हद ही हो गई। आख़िर जबरदस्ती आंखे मूंद कर कोई कब तक लेटा रह सकता है। 
बचपन में भरी दुपहरी में जब सूर्य पूरे ताप पर तपता था तो माँ हम बच्चों को ले कर हमारे पास रह रहे चाचा जी के घर आ जाती थीं। तब हमारे पास बिजली का पँखा नहीं था। हाथ का पँखा कोई कब तक झलता। चाचा जी के यँहा उषा कम्पनी का छत का पँखा था। हमारी चाची हमारी मौसी भी थीं। तो माँ हम बच्चों को ले कर गर्मियों की दोपहरी में पंखे के कारण चाचा जी के आ जाती थीं। हम दोनों भाइयों को अपने साथ ले कर ठंडे फर्श पर माँ लेट जातीं। हम भी आँख मूंदे पड़े रहते और जैसे ही लगता कि माँ सो चुकी हैं, हम खिसक लेते तपती दुपहरी में बाहर आँगन में खेलने के लिए। 
पर  इतनी रात में अब कहाँ निकलूँ। तंग आ कर ड्राइंग रूम के सोफ़े पर पसर गया हूँ । साइड लैम्प जला कर ये पोस्ट लिख रहा हूँ। शायद नींद आ जाये।
बाहर चारों ओर नीरवता का साम्राज्य फैला है। सभी सो चुके हैं। आज तो झींगुर भी नहीं बोल रहे। ये समय पढ़ने के लिए सबसे बढ़िया है। मैं अधिकतर रात में ही पढ़ता था। पर अब क्या करूं?  सिर पर पँखा पूरी गति से घूम रहा है। भूख सी भी लग आई है। पर खाऊंगा कुछ नहीं। बस नींद आ जाये किस तरह! 
21 मार्च से घर मे बंद हूँ। वही एकरसता। अभी पता नहीं कितने  दिन और बंद रहना है। दिन में सो जाता हूँ तो रात में नींद कैसे आएगी? बस आज कुछ अधिक ही हो गया। लेटते ही नाक बंद हो जाती है। फिर उठ बैठता हूँ। घड़ी की सुइयां आगे बढ़ रही हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते घूमते अपना अर्ध चक्र पूरा कर चुकी है। कुछ घँटों बाद सूर्य नारायण उदय हो जाएंगे। इस कोरोना की महामारी ने पूरे विश्व में उथल पुथल मचा दी है। कितने ही लोग काल के गाल में समा गए। पता नहीं ये कब समाप्त होगी? उम्मीद कम है कि 15 अप्रैल से लॉक डाउन खुल जायेगा। और दो तीन दिन में पता चल ही जायेगा। पहले कोई छींकता था तो लोग "गॉड ब्लेस यू" कह कर आशीर्वाद दिया करते थे। अब कोई छींक देता है तो लोग ऐसे देखते हैं जैसे वो व्यक्ति न हुआ, वायरस की चलती फिरती फैक्ट्री हो गया। अरे चैत्र और क्वार माह में तो ये सब बहुत आम हुआ करता था। पर अब तो छींकते, खांसते भी डर लगने लगा है। क्या किया जाय। जाहि विधि राखे राम। चलिए, जै राम जी की। सोने का प्रयत्न करता हूँ। नींद तो नहीं आ रही पर आँखे थक गई हैं। इन्हें आराम देना आवश्यक है। 
 

No comments:

Post a Comment