चलिए इस अंतर को एक परिदृश्य से समझते हैं। मेरे निजी अनुभव है कोई काल्पनिक घटना नही । बात कर रहा हूँ सरकारी टेलीफ़ोन कम्पनी की और निजी टेलीफ़ोन कम्पनी की। मेरे घर पर कुछ वर्ष पूर्व सरकारी टेलीफोन कम्पनी का फ़ाइबर कनेक्शन लगा था। सरकारी इसलिए लेना पड़ा कि उन दिनों निजी कंपनियों का फ़ाइबर मेरे क्षेत्र में उपलब्ध नहीं था। खैर एक फॉर्म भरना पड़ा। कुछ मॉडम की सिक्योरिटी राशि जमा करवाई। कुछ दिन के बाद कनेक्शन डाल के एक मॉडम दे दिया गया। उसमें बस पॉवर की LED हरी थी। बाकी डेटा LED लाल जलती रही। कई दिन बाद कुछ लोग आए, कुछ कुछ करते रहे जिससे बाकी LED भी अब हरी हो गईं। पर नेट नहीं चल रहा था। जो व्यक्ति आये थे उन्हें शायद उतनी तकनीकी जानकारी नहीं थी । खैर, एक साहब आये और कम्प्यूटर या लैपटॉप मांगा और IP एड्रेस, गेटवे एड्रेस डाल कर नेट चलाया। मैंने कहा कि ये तो वायर्ड कनेक्शन है मुझे तो wifi राऊटर चाहिए जिससे में वायरलैस नेट चला सकूँ। तो पता चला कि कम्पनी तो वायर्ड ही उपलब्ध कराती है। वायरलैस चाहिए तो अपना राऊटर खरीदिये। मैंने अमेज़न से 1200 रुपये का सस्ता सा wifi राऊटर मंगाया और स्वयं ही कॉन्फ़िगर कर चालू किया। FFTH का ये कनेक्शन जब तक चलता, स्पीड के मामले में घिसट घिसट कर चलता। और जब भी LED लाल हो जाती तो कभी भी सप्ताह से पहले ठीक नहीं होता। शायद ही कभी 35-40 mbps से अधिक स्पीड मुझे मिल पाई हो। इसके साथ जो एक लैंडलाइन टेलीफोन कनेक्शन दिया गया उसमें लाइन पर इतना शोर था कि आपके कान में समस्या हो जाये। तो लैंडलाइन उपकरण उठा कर रख दिया। आप चाहे व्हाट्सएप्प वीडियो कॉल करें या प्राइम/नेटफ्लिक्स देखना चाहें, स्ट्रीमिंग इतनी स्लो कि आप फ़िल्म कम और स्क्रीन पर चक्र घूमता ज़्यादा देखेंगे। और भुगतान के मामले में, तो तीन महीने का अग्रिम रेंटल आप से ले लिया जाता। एक दिन भी पेमेंट में देरी हो जाये तो 100 रुपये सीधा लेट फ़ी के आप पर थोप दिए जाते थे। आपका कनेक्शन चाहे 10 दिन डाउन पड़ा रहे उसकी कोई रिबेट आपको नहीं दी जाती थी। वो तो जब तक एक परिचित तीस हजारी एक्सचेंज में थे, फोन पर लिहाज़ कर शिकायत अटेंड करवा देता थे। जब से वो रिटायर हुए, तब से तो शिक़ायत कई कई दिनों तक "पेंडिंग एट FOD" में ही पड़ी रहती थी। 13 तारीख़ को शिक़ायत दर्ज कराई थी आज 20 तारीख़ को जब तक मैं तंग आ कर कनेक्शन ही कटवा चुका था, एक सज़्ज़न पूछने आये थे कि नेट चल रहा है क्या?
अब देखिए निजी कम्पनी की एक झलक! मैंने रात फोन किया कि मुझे एक कनेक्शन लगवाना है। क्या प्लान्स हैं? तुरन्त मेरे व्हाटसअप पर सारे प्लान्स की डिटेल भेज दी गई। मैंने पूछा ,कब तक लग जायेगा तो बोले जब आप कहें। मैंने पूछा कल लग सकता है क्या? बोले बिल्कुल। मैंने कहा पर मैं तो साढ़े आठ तक निकल जाता हूँ। तो बोले कल आठ बजे मैं आपसे मिलता हूँ। अंतर देखिए सरकारी टेलीफोन कम्पनी में आपको जाने पर भी 11 बजे तक भी कोई अटेंड कर ले तो भाग्यशाली समझिये अपने आप को। ठीक 8 बजे सुबह, वो व्यक्ति मेरे दरवाज़े पर था। मैंने सोचा कोई फॉर्म भरवायेगा और मुझे देर होगी। पर उसने मेरा आधार कार्ड मांगा। मेरी एक फोटो अपने मोबाईल से ली। एक OTP जो मेरे मोबाईल पर आया था , मांगा और कहा कि आपके मोबाईल पर पेमेंट लिंक आया होगा। मैंने लिंक पर जा भुगतान किया और दस मिनट में वो जा चुका था। मैं ठीक समय पर ऑफिस निकल गया। मैं अभी लिफ़्ट में ही था कि टेक्नीशियन का फ़ोन आया कि मैं आपकी कॉलोनी में हूँ। कनेक्शन लगाना है। कोई 12 बजे तक कनेक्शन लगा, चालू कर वो चला गया। शाम को मैं आया तो देखा मेरा राउटर एक तरफ पड़ा है। और एक सुंदर सा ड्यूल बैंड मॉडम-कम- wifi राऊटर लगा हुआ था। 5G बैंड पर स्पीड 200 mbps+ आ रही थी। और कोई सिक्योरिटी नहीं। लागत सरकारी से थोड़ी कम।
इधर सरकारी टेलीफोन एक्सचैंज में जब मैंने किसी को कनेक्शन सरेंडर करने के लिए, मॉडम और फ़ोन इंस्ट्रूमेंट के साथ भेजा तो एक्सचेंज ने लेने से मना कर दिया क्योंकि सम्बन्धित कर्मचारी साइट पर था। किसी भूतपूर्व अधिकारी से फ़ोन करवाया तब कहीं जाकर वो समान जमा हो सका। उस पर मेरा पैन कार्ड मांगा गया। मेरी समझ नहीं आ रहा कि कनेक्शन काटने में पैन कार्ड का क्या काम ? सिक्योरिटी रिफंड के बारे में पूछने पर एक माह बाद आने को कहा गया। वो व्यक्ति तो सामान जमा कराने गया था सुबह 10 बजे से वहाँ धक्के खाता रहा और तीन बजे वापस आ पाया। अब ऐसे विभाग को क्या कहें जो अपना सामान लेने में ही आनाकानी कर रहा है। किसके पास इतना समय है जो इनके चक्कर लगाए! इन्हें तन्खाह समय से पूरी मिल जाती है। इन्हें कोई मतलब नहीं कि ग्राहक परेशान हो रहा है या हमें छोड़ जाएगा। इनकी बला से सारे ग्राहक ही निजी ऑपरेटर के पास चले जायें। इसकी विपरीत , आप अपना मोबाईल नम्बर एक निजी सेवा दाता से दूसरे निजी सेवा दाता के पास पोर्ट करा कर तो देखिए, ऐसे चिरौरी करेंगे मानो उनकी जॉब ही जा रही हो। ये अंतर है ,सरकारी में और निजी क्षेत्र में।
ऐसे ही बैंक के मेरे पास कई अनुभव है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की सेवाएं, उनके कर्मचारियों का व्यवहार तो इतना खराब है कि क्या बतायें। ये ठीक है कि सभी सरकारी कर्मचारी ख़राब नही होते। मैंने भी सरकार में सेवाएं दी हैं। परंतु ये भी सत्य है कि अधिकतर विभागों में स्थितियां खराब है विशेषकर उन विभागों में जहाँ जन सामान्य को इन सरकारी विभागों से कम पड़ता है।
अब सरकार ठीक कर रही है या गलत, ये बहस बेमानी है। सत्य तो ये है कि आम आदमी को इन भृष्ट, कामचोर सरकारी कर्मचारियों से मुक्ति चाहिए और निजीकरण के अलावा इसका कोई विकल्प नहीं है।
Writing is so crisp.. Tightly written. Never wanders away from the actual storyline. Exceptional work!!
ReplyDelete