अभी अभी महाकुम्भ का समापन हुआ. करोड़ो ने प्रयागराज में डुबकी लगाकर अपने पापों का मार्जन किया. कहा गया कि ऐसा दुर्लभ संयोग 144 वर्षों के बाद आएगा. जो नहीं जा पाए वो निराश हैं कि उनके जीवनकाल में तो अब ये सम्भव नहीं हों पायेगा. ये पोस्ट उन्हीं निराश लोगों के लिए ही है. वैसे गया तो मैं भी नहीं चाहे कारण कुछ भी रहा हो.
गर्ग संहिता के वृंदावन खंड में एक कथा आती है. पूर्व काल में शांखसुर नाम से एक राक्षस हुआ जो ब्रह्मा जी के पास से चारों वेद चुरा कर समुद्र में जा घुसा. भगवान् ने उसे मार कर चारों वेद प्रयागराज में जा कर ब्रह्मा जी को लौटा दिए. फ़िर सम्पूर्ण देवताओं के साथ श्रीहरि ने विधिवत यज्ञ का अनुष्ठान किया और प्रयागराज के अधिष्ठाता देवता को बुला कर उसे ‘तीर्थराज’ पद पर अभिषिक्त कर दिया. उसी समय जंबूदीप के सारे तीर्थ भेंट लेकर तीर्थराज के पास आए और उनकी पूजा वन्दना करके अपने अपने स्थान को चले गए.
ज़ब देवताओं के साथ श्रीहरि भी चले गए तब नारद जी आ पंहुचे और तीर्थराज से बोले. निश्चय ही तुम समस्त तीर्थो द्वारा विशेष रूप से पूजित हुए हो परन्तु व्रज के वृंदावन आदि तीर्थ तुम्हारे सामने नहीं आये. तुम तीर्थो के राजाधिराज हो. ऐसा करके उन्होंने तुम्हारा अपम्मान किया है.
तब तीर्थराज के मन में बड़ा क्रोध हुआ. और वह उसी क्षण श्री हरि के लोक में गये. श्रीहरि को प्रणाम और उनकी परिक्रमा कर सम्पूर्ण तीर्थो से घिरे हुए तीर्थराज श्री हरि से बोले. देवदेव मैं आपकी सेवा में इसलिए आया हूँ कि आपने तो मुझे ‘तीर्थराज’ बनाया और समस्त तीर्थो ने मुझे भेंट दीं, किन्तु मथुरा मंडल के तीर्थ मेरे पास नहीं आये. उन प्रमादी व्रज तीर्थो ने मेरा तिरस्कार किया है. अतः ये बात आपसे करने के लिए मैं आपके मंदिर में आया हूँ.
श्री भगवान बोले, ‘मैनें तुम्हें धरती के समस्त तीर्थो का राजा ’तीर्थराज‘ अवश्य बनाया है, किंतु अपने घर का भी राजा तुम्हें ही बना दिया हो, ऐसी बात तो नहीं हुई है. फिर तुम तो मेरे गृहपर भी अधिकार जमाने कि इच्छा लेकर बात कैसे कर रहे हो? तीर्थराज ! तुम अपने घर जाओ. मथुरा मंडल मेरा साक्षात् परातपर धाम है, त्रिलोकी से परे है. उस दिव्यधाम का प्रलयकाल में भी संहार नहीं होता.‘ ये सुनकर तीर्थराज बड़े विस्मित हुए. उनका सारा अभिमान गल गया. फिर वहां से आकर उन्होंने मथुरा के व्रज मंडल का पूजन और उनकी परिक्रमा कर के अपने स्थान को पदार्पण किया.
उपरोक्त व्रज मंडल कहीं चला थोड़े ही गया है. जाइये उन तीर्थो का सेवन करिये और महाकुम्भ में डुबकी से भी बड़ा पुण्य उपार्जन कीजिये.
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