Saturday, 29 August 2015

पिछोला झील -उदयपुर

उदयपुर प्रवास के अंतिम दिन पिछोला झील जाना हुआ। इससे सटा हुआ एक और छोटा तालाब है जिसे दूध तलाई के नाम से जानते है।शायद कभी इसके पानी का रंग दूध की तरह सफ़ेद रहा होगा तभी इसका नाम दूध तलाई पड़ा ऐसा मैं सोचता हूँ। मुझे तो इसका नाम सुनकर दूध मलाई याद आ जाती है जिसे बचपन में दोनो में चीनी मिलाकर खाया करते थे। ख़ैर मैं बात कर रहा था पिछोला झील की।
अरावली पहाड़ो की सतत श्रंखला इस झील के पार्श्व में फैली हुई है। झील के मध्य में दो होटल बने हुए हैं - लेक पैलेस और जग मंदिर। लेक पैलेस में मेरा बहुत वर्ष पहले जाना हुआ था। इन दोनों होटलों में बोट से जाना पड़ता है। डूबता हुआ सूर्य व सिमटती हुई रौशनी बहुत भली मालूम होती थी। ठंडी हवा की बयार का आंनद लेने वंहा बहुत लोग आये हुए थे। कुछ बोटिंग का आनंद ले रहे थे। धीरे धीरे सूर्य अस्त हो गया था। पूर्णिमा का चाँद विपरीत दिशा से पहाड़ो के ऊपर से झांक रहा था। बादलों ने उसकी चमक कुछ फीकी जरूर कर दी थी। रोप वे बंद हो चुका था। अँधेरा छा चुका था और लाइटे जल गयी थीं। दोनों होटल झील के मध्य जगमगा रहे थे। हम भी वापस लौट पड़े।

Friday, 28 August 2015

सेलिब्रेशन माल्स -उदयपुर

उदयपुर - PVR - सेलिब्रेशन मॉल्स। मांझी फ़िल्म देखी। एक सत्य कथा पर आधारित इस फ़िल्म में व्यक्ति के दृढ़ निश्चय एवम् पर्वत से भी ऊँचे मनोबल का सफल और जीवन्त चित्रण किया गया है। एक अकेले व्यक्ति ने 22 वर्षों के अथक प्रयास से 25 फुट ऊँचे और 30 फुट चौड़े पहाड़ को छेनी हथोड़े से काट कर रास्ता निकाल दिया। जिससे दो गाँवो की दुरी 55 किलोमीटर से घट कर मात्र 15 किलोमीटर रह गयी। सुनने में यह असम्भव लग सकता है पर यह सत्य घटना है जो बिहार में गया के पास गेहलौर गावँ में घट चुकी है। कारण - उसकीपत्नी उसका खाना लाते हुए उसी पहाड़ पर से फिसल कर मरी थी। एक गरीब अकेले व्यक्ति की इस 22 वर्ष की सतत् यात्रा जो एक ही उद्देश्य को सामने रखकर की गयी ,हम में से प्रत्येक के लिए प्रेरणा हो सकती है। यदि ये मात्र फ़िल्म होती तो इस पर शायद ही विश्वास किया जा सकता था। एक गीत की एक पंक्ति उद्वत् करना चाहूँगा - "बाजूओं में दम है फिर काहेका गम है" ।
दशरथ मांझी की बाजूओं ने अडिग पर्वत काट डाला।
ये सिर्फ अडिग मनोबल के सहारे ही सम्भव हो पाया।

उदयपुर का PVR दिल्ली के PVR से कँही बेहतर है। चाहे वो टिकट वेंडिंग ऑटोमेटेड मशीन हों या चौड़ी आरामदायक कुर्सियां या फिर ज्यादा लेग स्पेस या फिर अलग अलग हैंड रेस्ट।
शुभ रात्रि।

Thursday, 27 August 2015

श्री जी के धाम से

नाथद्वारा - श्री जी के धाम में। उत्थापन के सुन्दर दर्शन किए आज। यँहा पूरे क्षेत्र में एक दिव्य अनुभुति होती है। अभी 5:30 पर हिण्डोले के दर्शन खुलेंगे। पत्नी बाजार में कुछ छोटी मोटी खरीदारी कर रही है। और मैं मन्दिर के बाहर बैठा फेस बुक पर ये पोस्ट डाल रहा हूँ। यँहा फ़ोटो ग्राफी वर्जित है। इसलिए फ़ोटो नहीं भेज पा रहा हूँ। यँहा की पोदीने वाली स्पेशल चाय का जायका मुझे पसंद नहीं है। फिर भी एक कुल्हड़ चाय पीने का लोभ संवरण नहीँ कर पाया। अभी शाम को उदयपुर वापस जाना है। यदि आप अभी तक यँहा नहीं आये हैँ तो एक बार अवशय आइये और इस दिव्य अनुभति का अनुभव करिये। उदयपुर से यह स्थान मात्र 50 किलोमीटर के लगभग है। और जल्द ही इस मार्ग पर 4 लेन सड़क का निर्माण पूरा होने जा रहा है। एक अंतिम बात -यँहा के दर्शनों में भीड़ व धक्का मुक्की बहुत होती है। जो भीड़ भाड़ से दूर रहते हो उन्हेँ यँहा आकर निराशा हो सकती है। पर मात्र इस कारण से यँहा ना आना कोई बुद्धिमानि पूर्ण निर्णय नहीं होगा। वैसे भी कहते है जिसे श्री जी नहीं बुलाते वो यँहा आ ही नहीं सकता। कारण चाहे कोई भी हो। आप सभी को नाथद्वारा से मेरी जय श्री कृष्ण।

Thursday, 13 August 2015

एक नाटक का मंचन

दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने स्वत्रंता दिवस की पूर्व संघ्या से एक दिवस पहले यानि आज शाम 'तुम फिर कब मरोगे गांधी' नाटक का मंचन किया। स्थान था - मंडी हाउस स्थित श्री राम सेंटर फॉर आर्ट एंड कल्चर। निर्माता निर्देशक थे हमारे साथी श्री प्रवीण कुमार जो मेट्रो में ही कार्य रत हैँ। भाग लेने वाले समस्त कलाकार मेट्रो कर्मचारी ही थे। इस अवसर पर प्रबन्ध निदेशक महोदय श्री मंगू सिंह जी एवम् अन्य निदेशक गण उपस्थित थे। प्रवीण कुमार जी अपनी इस प्रतिभा के लिए काफी समय से जाने जाते हैँ। वह स्वयं एक मंझे हुए कलाकार तो है हीं, एक कुशल निर्देशक भी हैं। लगभग 50 कलाकारों को लेकर वह इस बार मंच पर आये। सभी कलाकारों ने अपने सफल अभिनय से दर्शकों का मन मोह लिया। किसी एक के अभिनय की प्रशंसा करना अन्य सभी के साथ अन्याय होगा। हमारे अपने बीच में इतनी प्रतिभा के धनी लोग मौजूद हैं -जानकर सुखद आश्चर्य हुआ। नाटक में गांधी जी के मूल्यों का जो आज हनन हो रहा है - इस विषय पर कटाक्ष किया गया।आज के समय में गांधी जी के सिद्धांतों में जो विरोधाभाास् है उसे सफलता पूर्वक दर्शाया गया। आज की शाम को नाट्यमय करने के लिये दिल्ली मेट्रो का आभार। बहुत अंतराल के बाद रंगमंच से रूबरू होने का आज अवसर मिला।