उदयपुर - PVR - सेलिब्रेशन मॉल्स। मांझी फ़िल्म देखी। एक सत्य कथा पर आधारित इस फ़िल्म में व्यक्ति के दृढ़ निश्चय एवम् पर्वत से भी ऊँचे मनोबल का सफल और जीवन्त चित्रण किया गया है। एक अकेले व्यक्ति ने 22 वर्षों के अथक प्रयास से 25 फुट ऊँचे और 30 फुट चौड़े पहाड़ को छेनी हथोड़े से काट कर रास्ता निकाल दिया। जिससे दो गाँवो की दुरी 55 किलोमीटर से घट कर मात्र 15 किलोमीटर रह गयी। सुनने में यह असम्भव लग सकता है पर यह सत्य घटना है जो बिहार में गया के पास गेहलौर गावँ में घट चुकी है। कारण - उसकीपत्नी उसका खाना लाते हुए उसी पहाड़ पर से फिसल कर मरी थी। एक गरीब अकेले व्यक्ति की इस 22 वर्ष की सतत् यात्रा जो एक ही उद्देश्य को सामने रखकर की गयी ,हम में से प्रत्येक के लिए प्रेरणा हो सकती है। यदि ये मात्र फ़िल्म होती तो इस पर शायद ही विश्वास किया जा सकता था। एक गीत की एक पंक्ति उद्वत् करना चाहूँगा - "बाजूओं में दम है फिर काहेका गम है" ।
दशरथ मांझी की बाजूओं ने अडिग पर्वत काट डाला।
ये सिर्फ अडिग मनोबल के सहारे ही सम्भव हो पाया।
दशरथ मांझी की बाजूओं ने अडिग पर्वत काट डाला।
ये सिर्फ अडिग मनोबल के सहारे ही सम्भव हो पाया।
उदयपुर का PVR दिल्ली के PVR से कँही बेहतर है। चाहे वो टिकट वेंडिंग ऑटोमेटेड मशीन हों या चौड़ी आरामदायक कुर्सियां या फिर ज्यादा लेग स्पेस या फिर अलग अलग हैंड रेस्ट।
शुभ रात्रि।
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