Monday, 11 January 2016

पठानकोट के शहीद सैनिकों को समर्पित

सर्द रात थी। हाड़ कँपाने वाली ठण्ड। सायं सायं करती हवा जब चीड़ के दरख्तों के बीच से गुजरती थी तो पूरा प्रदेश सिहर सा उठता था। दूर दूर तक आदमी  नज़र नहीं आते थे। गुनगुनी धूप में जब सैलानी यँहा थे तब चहल पहल से गूंजता ये पर्वत प्रदेश अब अँधेरे में शमशान सी शांति ओढे खड़ा था। चारों और बर्फ ही बर्फ थी। आज रात भी शायद बर्फ गिरे। टीन की छत वाली एक मात्र चाय की दुकान भी बंद हो गयी थी। रात बढ़ने के साथ ही बर्फ बारी शुरू हो गयी। रुई के गोलों सी सफ़ेद भुरभुरी बर्फ ने सब को मानो अपनी सर्द चादर ओढ़ाने की ठान ली हो। इन सब के बीच अपनी राइफ़ल लिए सजग खड़ा  प्रहरी रौनक सिंह चौकन्ना था। उसकी आँखे अँधेरे को चीरती हुई उस पार देख रही थी। रुक रुक कर वो अपने ऊपर से बर्फ झाड़ता रहता। स्पेशल सूट मेँ भी उसका बदन अपनी गर्मी को अंदर नहीं रोक पा रहा था। भारी जूतों के अंदर पैर ठन्डे हो रहे थे। आज रात उसकी ड्यूटी थी। अभी तो रात शुरू ही हुई थी। इस कमबख्त बर्फ को भी आज ही गिरना था। कल ही तो वो छुट्टी से लौटा है। गाँव में पत्नी उम्मीद से है। कितनी कमजोर लग रही थी इस बार। और उस पर सारे घर का काम। माँ के बस की अब काम नहीं है। उम्र हो चुकी है उसकी भी। पिता रहे नहीं। भगवान् भरोसे छोड़ कर आ गया है ड्यूटी पर। ऊपर से आदेश जो आया था कि सबकी छुट्टी रद्द की जाती है। वरना गया तो था जचगी के बाद ही लौटने के लिए। जैसी रब्ब की मर्जी। उसने एक गहरी साँस ली। गला सूखने लगा था। ठण्ड इतनी कि थूक भी जम जाये। गले मेँ लटकी रात में देखने वाली दूरबीन उसने साफ़ करके आँखों पर लगाई और कुछ हलचल देखने का प्रयत्न करने लगा। सामने लगी कांटेदार बाड़ के उस पार चीनी सीमा थी। रात में देखने वाली दूरबीन इंसानी शरीर की गर्मी से पैदा हुई थर्मल इमेजिंग पर काम करती थीं। कुछ हलचल तो बाड़ के पास थी। धुंधली सी लाल दो आकृतियां थी वंहा पर। जंगली जानवर भी हो सकते थे। शायद उसे भ्रम हुआ हो। ठण्ड में दिमाग़ भी तो ठीक से काम नहीं करता। उसने फिर से देखा। इस बार आकृतियां कुछ और नज़दीक नज़र आईं। "कौन आता है वँहा ?" वो पूरे जोर से चिल्लाया। "वंही थम जाओ, वरना गोली मार दूंगा" वो और जोर से चिल्लाया। उसने राइफ़ल तान ली थी। जवाब नहीं आते देख उसने राइफ़ल पर लगी दूरबीन से देख कर फ़ायर किया। सर्द रात में गोलियों की आवाज़ गूंज उठी। कुछ दूर पर साथी सैनिक चिल्लाया। "औए रौनक सिंघा! क्या हुआ?" पर उसका ध्यान तो सामने की हलचल पर केंद्रित था। ऑटोमेटिक राइफ़ल इस बार ग़रज़ पड़ी। एक साथ कई गोलियां उसने सामने की हलचल पर दाग दी। तभी उसे लगा कि उसके शरीर मेँ भी कुछ लगा है। और वो गिर पड़ा। दस्ताने पहने हाथ से उसने टटोलना चाहा पर कुछ पता नहीं चला। उसे पीड़ा नहीं हो रही थी पर कुछ उसके शरीर में दिल के पास जाकर अटक गया था जिससे वो सांस नहीं ले पा रहा था। उसने रम की बोतल अपने कोट की साइड पॉकेट में टटोलनि चाही पर हाथों ने साथ नहीं दिया। उसने चिल्ला कर साथी सैनिक को पुकारना चाहा पर आवाज गले मेँ ही घुट गयी। बर्फ अभी भी पड़ रही थी। उसे अपनी माँ का चेहरा याद आया । चलते वक्त उसने कहा था इस बार आयेगा तो बेटे का चेहरा देखेगा। फिर क्लांत पत्नी की आँखे,  जो विदा करते हुए न जाने को कह रही थीं सामने आ गईं।
तभी पिता बगल में आ खड़े हुए। हाथ बढ़ा कर बोले चल पुतर् तू मेरे साथ चल। उसने हाथ थामा और उठ खड़ा हुआ। अब उसे बहुत हल्का लग रहा था। पिता का हाथ थामे वो बढ़ता गया प्रकाश पुंज की ओर। बढ़ते बढ़ते उसने देखे दो चीनी सैनिकों के शव जो अब तक आधे बर्फ से ढक चुके थे। उसने पिता की और देखा और मुस्कराया  । पिता ने उसकी पीठ थपथपाई। मानो कह रहे हों मुझे नाज़ है तुझ पर मेरे पुतर्। बर्फ बारी अब बंद हो गई थी।

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