साइड अपर बर्थ होने के कारण रात भर सो नहीं पाया। साढे पांच बजे नीचे आ गया। केबिन वाले यात्री बीच में कंही उतर गए थे। मुँह हाथ धो कर नीचे की बर्थ पर आ बैठा। बाहर अंधकार है। मोबाइल का इन्टरनेट भी काम नहीं कर रहा जिससे जान सकूँ कि गाड़ी कँहा चल रही है। सभी यात्री मुँह तक कम्बल ओढ़ सोये हैं। गीता का श्लोक पोस्ट किया है पर पोस्ट नहीं हो पा रहा है। अभी अभी मावली जंक्शन आया है। समय देखने से पता चला कि गाड़ी 15 मिनट विलम्ब से है। एक चाय वाला कर्कश आवाज में चाय चाय चिल्लाता हुआ कोच में घूम रहा है। मैंने तलब मिटाने को एक चाय ली। पत्नी अभी सो रही है। चाय थी तो ठीक ठाक पर गटक मीठी थी। एक घूंट पी कर छोड़ दी। इतने समय से फीकी चाय के बाद अब मीठी चाय गले से नहीं उतरती। तभी पत्नी ने कम्बल से झाँका और बैठे रहने का कारण पूछा। जवाब देते हुए मैने पाया कि आवाज ही नहीं निकल रही। शायद रात भर वातानुकूलित में लेटने का असर है। बाहर क्षितिज पर सिंदूर बिखर गया है। पक्षी जाग गए है और उड़ चले है। सिंदूर के नीचे सिलेटी रंग घुल रहा है। माने किसी चित्रकार ने पेस्टल कलर मिला दिए हों। पेड़ो की कतारें साथ चल रही है। अब दिन निकल आया है। पोने सात बज रहे हैं पर भुवन भास्कर उपर नहीं आये हैं। यद्यपि उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कर दी है। मेरा गंतव्य आने में कुछ ही समय शेष है। सामान सँभालता हूँ।
Wednesday, 30 November 2016
Wednesday, 23 November 2016
Coming back from office
Stuck up in horrible traffic jam. The half an hour journey seems endless. Six rows of cars- one behind another, bumper to bumper are inching ahead. Thankfully, I am not driving. The blue board ahead reads- "ISBT", written in white- glowing as the head lights fall on it. It seems like another city. The Red fort wall standing tall seems oblivious of my plight. I can see the only star above the fort's wall that has somehow mustard courage to shine in thickly polluted sky. Trees standing withered on the median have lost their greenish look due to dust. They badly need a shower to wash the dust off. As my car inches ahead, the lone star moves along. Indian Railway train passes over my head making mockery of cars below. Lord Hanuman's temple of yamuna bazar is still ahead. I can see many people drapped in shabby and tattered blankets sleeping on the foot path. Noise and light of the traffic seem to have no impact on them. None of them is moving. Traffic has now come to a stand still. Traffic police is there but seems helpless. Now the board ahead reads- Nigam Bodh Ghat. It means I have crossed lord Hanuman's temple. On my right, top on the entry gate of Nigam Bodh Ghat, Lord Shiva's statue in samadhi posture is placed. Below it is written "Moksh Dwar". As if , all who enter through this gate were bound to get liberation from the cycle of birth and death. Though the fact remains that we do'nt know when we will be liberated from this ubiquitous traffic jams of Delhi city!
Monday, 21 November 2016
अजनबी शहर के अजनबी लोग
ये सड़के जो चलती नहीं फिर भी सैकड़ो लोगो को इधर उधर ले जाती है। सुबह से शाम या फिर आधी रात, ये अनगिनत लोगो को इधर से उधर पंहुचती रहती हैं। कितने वाहन, कितने लोग न जाने कँहा से प्रकट हो जाते हैं दिन उगते ही। फिर दिन छिपने के साथ न जाने कँहा लुप्त हो जाते हैं। इन भागते दौड़ते लोगों में से हर एक की एक कहानी है। पर न तो कोई सुनाने वाला है और न ही कोई सुनने वाला। बस सब भाग रहे हैं। भागे ही जा रहे हैं। निराशा, क्रोध, अनिश्चितता से भरे हुए। बात बात में झगड़ने को तैयार, जान लेने पर उतारू। बोलते हैं तो गालियों के फूल झड़ते हैं। इस तथा कथित सभ्य समाज के असभ्य लोग। सड़क पर सर्कस करते, यातायात नियमो की धज़्ज़िया उड़ाते, न जाने कँहा चले जा रहे हैं। मेरी दिल्ली ऐसी तो न थी। ये कँहा जा रहे हैं हम? लगता है यँहा सब अजनबी हैं। मुखोटे पहने हुए। कोई कैसे पहचानेगा अपनों को इस भीड़ में। ये कँहा आ गए हैं हम ? इन पंक्तियों ने क्या खूब बंया किया है;
इन उम्र से लंबी सड़को को मंज़िल पे पँहुचते देखा नहीं। बस दौड़ती फिरती रहती हैं, हमने तो ठहरते देखा नहीं। इस अजनबी से शहर में जाना पहचाना ढूंढता है।
एक अकेला इस शहर में.....
Saturday, 12 November 2016
आत्म चिंतन
हम कौन हैं? कँहा से आये हैं? क्यों आये हैं? कँहा जायेगें? यँहा आने से पहले हम कँहा थे? इस संसार में इतनी विषमता क्यों हैं? यदि हम सब का पिता परमेश्वर है, तो वह अपने बच्चो के प्रति इतना उदासीन क्यों हैं? दुनिया में इतने पाप क्यों हो रहे हैं? आदि आदि प्रश्न हमें समय समय पर उद्वेलित करते रहते है। पर यह भी सत्य है कि करोडो व्यक्तियों में केवल कुछ ही इन प्रश्नों पर विचार करते हैं। अधिकतर तो इस बारे में सोचते ही नहीं। उनके पास खाने, सोने और काम में लिप्त रहने के अलावा इन प्रश्नों पर विचार के लिए समय ही नहीं है। ऐसे लोगो के लिए जीवन का एक ही उद्देश्य है - खाओ, पियो और मौज करो। उनके लिए जीवन स्त्री पुरुष के रज और शुक्राणु के मिलने के कारण है। न इस जन्म से पहले ये जीवन था न बाद में होगा। उनका मानना है कि जन्म बस एक जैविक प्रक्रिया ही है।पर क्या ऐसा है? आइये इस पर विचार करें।
प्रथम प्रश्न- हम कौन है? हम निश्चित रूप से ये देह नहीं हैं। हम इस देह में रहने वाले उस परमपिता परमेश्वर के अंश है। अंशी होने के कारण उस के सभी गुण न्यून रूप में हम में भी हैं। हम देही हैं। ये देह जड़ है और हम चेतन हैं।ये देह आत्म तत्व की इसमें उपस्थिति के कारण ही कार्य कर पा रहा है। आत्मा की उपस्थिति ही इसकी इंद्रियों को चेतनता प्रदान किये हुए है। आत्मा तत्व निकलते ही ये देह जड़ हो जाता है। सड़ने लगता है। अपनी सारी शुचिता खो देता है। इससे सिद्ध होता है कि हम यह देह नहीं हैं। हम इस देह में रहने वाले, इसे संचालित करने वाले आत्म तत्व है। देह परिवर्तित होता रहता है पर आत्मा सदा एक सी रहती है। जो यह बचपन में होती है वही ये वर्द्धवस्था में होती है। जन्मना, बढ़ना और नष्ट हो जाना देह के गुण धर्म है। आत्मा के नही।आत्मा इनसे परे एक रूप,अविनाशी, अभेध्य और सनातन है।
दूसरा प्रश्न - हम कँहा से आये हैं? और कँहा जायेंगे ? दैनिक जीवन में भी प्रत्येक व्यक्ति का एक घर होता है, ठिकाना होता है। वो जँहा कँही भी जाता है, वंही से जाता है। और वंही लौटता है। इसी प्रकार आत्मा भी अपने घर से चली हुई है, जो प्रभु का निवास स्थान है।ये अनन्त यात्रा की पथिक है। विभिन्न योनियों में यात्रा कर रही है। उन उन देहों को अपना स्वरूप मानकर उनके सुख दुःख भोग रही है। जिस दिन इसे अपना स्वरूप समझ आ जायेगा ,उस दिन ये पुनः अपने घर वापस पंहुच जायगी। तब तक ये जीव रूपी पथिक माया के इस घोर जंगल में भटकता रहेगा। हम इस जन्म से पूर्व कितने ही देह धारण कर चुके हैं। कितने ही माता पिता, पत्नी, पुत्र, पुत्रियाँ और सम्बन्धी छोड़ आएं हैं। आज हमें उनकी याद तक नहीं कि वो जीवित है या नहीं। जीवित हैं तो किस हाल में हैं । हम बस इस जन्म के सम्बन्धियों के बारे में चिंतित है।
तीसरा प्रश्न- यंहा आने से पहले हम कँहा थे? हम सब अपने घर में थे। और घर से निकल कर आज तक विभिन्न योनियों में थे। और फिर अपने घर ही लौटना है।अगला प्रश्न- ये संसार इतना विषम क्यों है? ये जो विषमता दीख पड़ती है ये जीवों के कर्मों के कारण है। वरना प्रभु तो सम हैं। उनके बनाये संसार में विषमता का क्या काम है?
अगला प्रश्न प्रभु की उदासीनता को लेकर है। प्रभु न तो किसीको सुख देते है और न ही दुःख। सभी प्राणी अपने अपने कर्मों का फल भोग रहे है। प्रभु इसमें हस्तक्षेप नहीं करते हालाँकि वह इसमें सक्षम है। मनुष्य के अतिरिक्त सभी योनियां भोग योनियां कही गई हैं। केवल मनुष्य मात्र में नए कर्म करने की सामर्थ्य दी है प्रभु ने। शुभ कर्म करके मनुष्य उत्तरोत्तर गति पा सकता है। और अशुभ कर्म करके अधो गति को प्राप्त हो सकता है। इसीलिये कहा गया है आत्मा ही अपना मित्र है और आत्मा ही अपना शत्रु भी।
अंतिम प्रश्न था कि दुनियां में इतने पाप क्यों हो रहे हैं? ये तो कलियुग का प्रभाव है। इसके प्रभाव से धर्म के चार चरणों में से अब एक ही बचा है। अधर्म के कारण ही पाप कर्मों की बढ़ोतरी हो रही है। और मेरा तो मानना है कि प्रभु को भी ऐसा ही अभीष्ट है क्योंकि उनकी इच्छा के बिना कुछ नहीं होता। इससे बचने का एक ही उपाय है और वो है प्रभु शरणागति। प्रभु शरण में गया व्यक्ति इस पाप से भरे संसार में भी कीचड़ में कमल की तरह निर्लिप्त रह सकता है, इसमें कतई भी संदेह नहीं है।