Saturday, 22 April 2017

एक मजदूर की मौत

मेरे कार्य भार में अन्य कई कार्यों के अलावा एक जिम्मेदारी लेबर वेलफेयर फण्ड संभालने की भी है। इस फण्ड से उन विधवाओं, बच्चों व बुजुर्ग माता पिता को जिनके पति, पिता या बच्चे प्रोजेक्ट साइट पर कार्य करते हुए दुर्घटना में मारे गए, आर्थिक सहायता दी जाती है। अब तक न जाने कितने चैक पर मैं हस्ताक्षर कर चुका हूँ। फाइलें आती हैं और चली जाती हैं। मेरे लिए ये मात्र एक कार्य है जो मुझे करना है। मैंने कभी उन फाइलों के पीछे छिपी कहानी जानने की कोशिश नहीं की और न ही मेरे पास इतने विस्तार से जानने का समय ही होता है। कल अलबत्ता मैं अपेक्षाकृत फुर्सत में था। एक ऐसी ही फ़ाइल मानव संसाधन विभाग से मेरे पास आई। उसमे 2 लाख रुपयों की सहायता राशि एक मजदूर की विधवा को देने की अनुशंसा थी। मैंने न जाने क्यों उत्सुकतावश उसे पढ़ना प्रारम्भ किया। उस व्यक्ति की उम्र 27 वर्ष थी। मैंने ध्यान से उसका चित्र देखा। अधिक स्पष्ट तो नहीं था पर मुखाकृति पहचानी जा रही थी। उसकी मौत काम करते हुए जैक की चोट लगने से हुई थी। फाइल में जैक का चित्र लगा था। जैक में लगा पाइप लगते ही वह गिर पड़ा था। और उसे जब अस्पताल ले जाया गया तब तक वह मर चुका था।प्रथम सूचना रिपोर्ट से, जो हिंदी में तकनीक शब्दो से युक्त थी , मुझे कुछ अधिक समझ नहीं आया। पोस्टमॉर्टम रिपॉर्ट से पता चला कि कोई बाहरी चोट नहीं थी। कनपटी के पास जोर से चोट लगने से मस्तिष्क के अंदर खून जमा हो गया था। पढते पढते मेरी नज़रों के आगे वह सारा दृश्य जीवित हो चलचित्र की भांति चलने लगा। क्या सोच के काम पर आया होगा वह व्यक्ति? पत्नी का क्या हाल होगा ?घर में कौन कौन हैं ?-  इत्यादि प्रश्न मन मे घुमड़ने लगे। मैंने विचलित हो फ़ाइल बन्द कर दी और नीचे मार्क कर दी। मैं जब लंच के लिए ऊपर जा रहा था तो लिफ्ट के पास सोफे पर बैठी एक महिला ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। काला रंग, पतला शरीर, उम्र 23- 24 की रही होगी। साधारण साड़ी में पैरों में घिस चुकी चप्पल पहने वह सकुचाई सी बैठी थी। आँखों मे एक सूनापन लिए उसने एक घड़ी मुझे देखा फिर नज़रे झुका ली। कौन है ये ? यँहा क्यों बैठी है? इन सवालों से घिरा मैं सीढ़िया चढ़ गया। लंच के बाद मैं एक मीटिंग में व्यस्त हो गया। कोई पौने पांच बजे जब मैं अपनी सीट पर वापस लौटा तो अन्य कागज़ों के साथ एक 2 लाख का चैक भी रखा था हस्ताक्षर के लिये। मैं कुछ और जरूरी कागज़ात पहले निबटाने लगा। तभी मेरे सहायक ने आकर उस चैक पर हस्ताक्षर करने को कहा। बोला,  इसकी विधवा लंच के पहले से इंतज़ार में बैठी है। मेरे सामने उसी कृश काय महिला का चेहरा आ गया। न जाने कँहा से आई है और क्या जरूरत है। अगले दो दिन फिर अवकाश है। मैंने बाकी पेपर एक तरफ किये और उस चैक पर हस्ताक्षर कर दिए। ऐसा करते हुए एक शांति का अनुभव किया मैंने। पैसा व्यक्ति की पूर्ति तो नहीं कर सकता पर उसके न रहने पर उसके आश्रितों को सम्बल जरूर दे सकता है। व्यक्ति कोई भी हो, किसी भी स्तर का हो अपने परिवार के लिए वह वो ही महत्व रखता है जो हम सब रखते हैं। उसके जाने का सदमा भी परिवारजनों को उतना ही गहरा लगता है जितना हम सब को लगता है। हर व्यक्ति के साथ एक परिवार लगा है जिसके पालन पोषण की जिम्मेदारी उस पर है। जीवन अनमोल है। कार्य क्षेत्र में सावधानी आवश्यक है। जब आप और हम मेट्रो के वातानुकूलित सफ़र का आनन्द ले रहे होते हैं तो क्या हम कभी याद करते है कि इसके निर्माण में कितने व्यक्तियों ने अपने जीवन का उत्सर्ग किया है? कितने परिवार अनाश्रित हुए हैं? उन सभी दिवंगत आत्माओं को ये पोस्ट श्रद्धा सुमन अर्पण करती है।

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