आज ऑफिस जाते समय एक ट्रक के रास्ते में डिवाइडर पर चढ़ कर रात में उलटने के कारण यातायात बाधित था। ड्राइवर ने गाड़ी मुख्य सड़क से हटा कर साइड वाली सड़क पर ले ली। अब हम यमुना के साथ साथ चल रहे थे। यमुना साफ दृष्टिगोचर हो रही थी। पानी चढ़ा हुआ था पर उफान पर नहीं थी। साथ ही एक चेतावनी बोर्ड लगा था - "जल स्तर बढ़ा हुआ है। आगे पानी गहरा है। जान जा सकती है।" जैसे ही हम आगे बढ़े, दायीं ओर को फ्लाईओवर के नीचे से सड़क मुड़ रही थी। उस सड़क पर जाते ही लगा कि ये जगह जानी पहचानी है। जल्द ही याद आ गया कि ये तो वही रास्ता है जो कभी नावों के पुल से यमुना पार करा कर लाता था। अरे, कितना बदल गया है सब कुछ पिछले 30-35 वर्षों में। कभी ये मार्ग कच्चा हुआ करता था। इस पर लाल बालू बिछी होती थी। दोनों और खेती होती थी। खेत की टूटी ताज़ी सब्ज़ियां बेचते लोग दोनों तरफ़ बैठे होते। साइकलों पर ऑफिस से वापस आते लोग रूक कर सब्ज़ियां लेते और आगे लगी टोकरी में रख लेते। बड़े बड़े पत्तों वाली ताज़ी मूली को पीछे लगे कैरियर में दबाते औऱ चल पड़ते अपने अपने नीड़ की ओर - यमुना के उस पार। ये सब सोच ही रहा था कि कार तब तक विजय घाट, जो लाल बहादुर शास्त्री जी की समाधी है , उस के ठीक सामने बनी सड़क पर आ गयी। बहुत वर्षों बाद विजय घाट को इतने नज़दीक से देखा। चंहु और - भीतर बाहर हरियाली ही हरियाली थी। अमर लता की पीली बिन पत्तो की बेल पौधों पर अपना एकछत्र साम्राज्य स्थापित कर चुकी थी। अंदर भी घास बड़ी हो गई थी। मेरा मन किया कि यंही रुक कर कुछ देर यही सब निहारूँ। पास जा कर हाथ से छुऊँ। नासिका में इसकी महक भर लूँ। कभी ये सड़क ऑफिस जाते साईकिल चालको से भरी रहती थी। आज इस पर कुछ वाहन हैं। पर इस पर बिखरी शान्ति आज भी कुछ कुछ वैसी सी है। कार की गति शायद विचारों की गति से ज्यादा थी। कब करके मैं शान्ति वन - नेहरू जी की समाधी के सामने आ गया, पता ही नहीं चला । अब तो मैं मुख्य रिंग रोड पर था जो मेरा रोज़ का मार्ग था। पीछे छूट चुका था विजय घाट और उससे जुड़े वर्ष। मन न जाने कैसा कैसा सा हो आया था। काश समय लौट सकता! देखते देखते दिल्ली कितनी बदल गयी है। और बदल गए है यँहा के निवासी। संवेदन हीन, प्रकृति से दूर, रोगों के नज़दीक, पाश्चात्य संस्कृति के दीवाने। कितना सरल था जीवन उस समय। कितना जटिल बना दिया है हमनें।
अब तो यादें शेष है । कंक्रीट के जंगल में यमुना कब तक बहेगी। एक दिन तो तंग आकर अपना पथ बदलेगी ही। और वह दिन दूर नहीं है।
Sunday, 23 July 2017
बदलता शहर, बदलते लोग
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment