Sunday, 8 April 2018

रस्किन बॉन्ड

आज रस्किन बॉन्ड को पढ़ रहा था। रस्किन बॉन्ड मेरे और मेरी बड़ी बेटी के सबसे अच्छे लेखकों में से एक हैं। वो मसूरी में रहते हैं और 83 वर्ष की उम्र के होंगे। मेरी बेटी उनसे मिलना चाहती है पर अभी तक उसकी ये अभिलाषा पूरी नहीं हो सकी है। जिन्होंने रस्किन बॉन्ड को पढ़ा है और जो प्रकृति प्रेमी हैं वो समझ सकते है कि उनकी रचनाएं प्रकृति के कितने करीब होती हैं। उनकी शैली उन्हें अन्य लेखकों से अलग ला एक विशिष्ट कतार में खड़ा करती हैं। वैसे तो उनकी कहानियां अंग्रेज़ी भाषा में होती हैं पर उनका हिन्दी अनुवाद भी उतना ही प्रभावशाली होता है। उनकी रचनाएं देहरादून की सड़कों, बाज़ारो और मसूरी की वादियों के आसपास घूमती रहती हैं।

रस्किन बॉन्ड का जन्म कसौली में हुआ था। वह लिखते हैं कि 1904 में जब दून रेलवे स्टेशन खुला था तब उनके नाना मिस्टर क्लार्क ने ओल्ड सर्वे रोड पर घर बनाया था। तब हर घर के साथ लम्बा चौड़ा बगीचा और खुली जगह होती थी। चारों तरफ़ बासमती के खेत महकते थे, लेकिन अब वँहा कंक्रीट का जाल हो गया है। उनका कहना है कि वह पिछले छह दशकों से मसूरी में रह रहे हैं और वह इस जगह को छोड़ कर जाना नहीं चाहते हैं। वह कहते हैं कि मसूरी की वादियों ने उनके अंदर के लेखक को बड़ा विस्तार दिया। वह यदि मसूरी में न होते तो वह मानते हैं कि वह शायद इतना न लिख पाते।

उनका कहना है कि पहाड़ो में जीवन बहुत धीमी गति के साथ आगे बढ़ता है। उनके अनुसार वँहा शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और रोजगार जैसे मुद्दे हैं जिन्हें हल करने की आवश्यकता है। वह कहते हैं कि पर्यटक पहाड़ो पर गंदगी फैलाते हैं। उनके द्वारा छोड़े गये प्लास्टिक और पॉलीथिन पर्यावरण को नुकसान पँहुचा रहे हैं। उनके प्रशंसक उन्हें खत लिख कर अपने पहाड़ो के अनुभव बताते हैं कि कैसे पहाड़ो पर आकर उनकी सारी थकान दूर हो जाती है। रस्किन बॉन्ड ने एक बड़ी ही मज़ेदार बात भी लिखी है अपने लेख में। उन्होंने लिखा कि अच्छे मौसम के साथ पहाड़ो का एक फ़ायदा ये भी है कि यँहा किस मोड़ पर भगवान से मुलाक़ात हो जाये कहा नहीं जा सकता।

अंत में उन्होंने लिखा कि पहाड़ो का सौंदर्य उनकी निर्मलता के कारण ही है। अगर इसे ही नष्ट कर दिया जाय तो घूमने को बचेगा ही क्या?

आज ये लेख पढ़ कर अच्छा लगा। जो भी प्रकृति प्रेमी हैं, जिन्हें मसूरी और देहरादून से लगाव है उन्हें इस लेखक को अवश्य पढ़ना चाहिए। इनकी कहानियां बच्चों और बडो को समान रूप से प्रभावित करेगीं, ऐसा मेरा मानना है।

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