सुबह का नाश्ता कर धूप में आ बैठा हूँ बॉलकोनी में। दीवार की ओट ले रखी है पर फिर भी हवा लग ही रही है। पास वाले बृहद नीम के वृक्ष पर गिलहरियां लगातार बिना विश्राम लिए शोर मचा रही हैं मानो कोई होड़ लगी हो। सामने वाले कीकर के पेड़ के ऊपर एक बड़ी चील अपने डैने फैलाये हवा में तैरती चक्कर लगा रही है। एक टिटेरी पक्षी लम्बी सी सीटी बजाता अभी अभी गया है। बचपन में माँ कहती थी छोटे भाई बहिनों की प्यास पीने से टिटेरी बन जाते हैं। और मैं डर कर पहले छोटो को पानी पीने देता था। बचपन भी कितना सरल होता था। "था" इसलिए कह रहा हूँ कि आज के बच्चों का बचपन इतना सरल नहीं होता कि वह कुछ भी मान जाएं। आज के बच्चे प्रश्न करते हैं, तर्क करते हैं और हर तथ्य को परखते हैं। आजकल के बच्चों के पास गूगल है। आज माँ उनसे ये नहीं कह सकती कि मैंने फूस का पुतला बना कर रखा था और रात में भगवान ने उसमें जान डाल दी और तुम मुझे मिल गए। यकीन मानिए मैं तो बहुत बड़े होने तक यही समझता था कि मैं संसार में इसी विधि आया था। क्योंकि माँ ऐसा कहती थी और माँ की बात को मैं जस का तस मान लेता था। पर ये सरलता आज नहीं है। बच्चे अपनी उम्र से जल्दी, बहुत जल्दी बड़े हो रहे हैं। पता नहीं ये बदलाव अच्छा है या बुरा, पर बचपन कंही खो गया है आजकल के बच्चों का।
चील सामने वाली कोठी की छत पर बनी पानी की टंकी पर आ बैठी है। उसकी मुड़ी हुई चोंच मैं देख सकता हूँ। सशंकित सी अपनी गर्दन घुमा इधर उधर देख रही है। जोधपुर के स्कूल की छत पर आधी छुट्टी के समय चीलें झुंड बना कर मंडराया करती थी। हम बच्चे अपने लंच में से रोटी के टुकड़े हवा में उछाल दिया करते थे और जोर से चिल्लाते थे- चीलम चिलो, आटो गीलो। और उड़ती हुई चीलें हवा में ही रोटी के टुकड़े झपट लेती थीं। ऐसे ही दिल्ली से जोधपुर जाते हुए "डीडवाना" स्टेशन पर गर्मा गर्म दाल की बड़ी कचौरी मिलती थीं। यदि आप अनजान हैं और स्टेशन पर खड़े खड़े ही कचौरी का स्वाद ले रहे हैं तो बहुत संभव है कि आप के हाथ से वो कचौरी कोई चील झपट ले जाये और जाते जाते आपके सिर पर पंजा भी मार जाए। जो चीलों के इस आतंक से परिचित थे वह गाड़ी में बैठ कर ही कचौरी खाना पसंद करते थे। चील अब टँकी से उड़ चुकी है।
ये सब समय गुज़र गया है और इतिहास हो चुका है। एक लम्बा अरसा बीत गया है। देखते ही देखते जीवन गुज़र गया। अगले माह सेवा निवृत्त हो रहा हूँ। लगता है कल ही सेवारत हुआ था।
बॉलकोनी से धूप चली गई है। हवा अब ठंडी लग रही है। अंदर चलता हूँ।
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