आज सुबह जार्ज फर्नांडीज़ अपनी दिवंगत यात्रा पर चले गए। दुनियां आनी जानी है। रोज़ न जाने कितने लोग आते हैं और जाते हैं। फिर उनके जाने से मुझे क्या अंतर पड़ा ? मैं तो कभी व्यक्तिगत रूप से उनसे मिला भी नहीं। फिर मैं व्यथित क्यों हूँ? ये जानने के लिए हमें अतीत में चलना होगा। वर्ष 1976-77 की बात होगी। हम कई युवा रेलवे में एक वर्ष की अप्रेंटिसशिप पूरी कर के सड़क पर थे। रेलवे ने इस आधार पर जॉब देने से मना कर दिया था। सभी निराश थे और गुस्से में भी थे। हम में से एक साथी ओम प्रकाश भटनागर की अगुआई में हम रोज धरना प्रदर्शन करते और रेलवे से अप्रेंटिसशिप के आधार पर जॉब देने की मांग करते थे । पर रेलवे अधिकारियों के कान पर जूं भी नहीं रेंगती थी। मैंने तो आशा त्याग दी थी और इन धरनों में जाना बंद सा ही कर दिया था। मैं दूसरी प्रतियोगिताओं की तैयारियों में जुट गया था। तभी ख़बर आई कि आज रात स्टेट एंट्री रोड पर सारी रात धरने पर बैठना है। सभी से कहा गया कि इक्कठे होकर एकजुटता दिखानी है। लड़कियों से भी कहा गया कि अपने अपने घर से पूरी रात धरने पर बैठने के लिए अनुमति लेकर आएं। सोशलिस्ट नेता फर्नांडीज़ साहब के गेस्ट हाउस के बाहर धरना करना था। उस समय शायद जनता पार्टी की सरकार थी और जॉर्ज फेर्नांडीज़ लोक सभा सांसद थे। रेलवे से उनका पुराना नाता था जब 1974 की रेलवे हड़ताल में वह एक कद्दावर नेता बन कर उभरे थे । तब आल इंडिया रेलवे मेन फेडरेशन के प्रेजिडेंट के पद से जॉर्ज फर्नांडीज़ ने रेलवे हड़ताल की अगुआई की थी। उस रात हम सब उनसे बड़ी आशा के साथ संरक्षण और मदद की गुहार लगाने वाले थे। धरना शुरू हुआ। भटनागर ने ओज पूर्ण भाषण दिया। तभी रात 9 बजे के आस पास जॉर्ज साहिब बाहर आये। वो ही चिर परिचित वेश भूषा से सुस्सजित, आँखों पर बड़े फ्रेम का चश्मा, पैरो में साधारण चप्पल पहने हुए। सभी शांत थे । उन्होंने बोलना प्रारंभ किया। थोड़ा बोले पर सार्थक बोले। कहा कि यदि आज मैं आप लोगो को जॉब दिलवा भी दूँ तो कल दूसरी सरकार के आते ही आप फिर सड़क पर आ जाओगे। रेलवे में जॉब रेलवे सर्विस कॉमिशन की परीक्षा पास करने से ही मिलती है। आप लोग इलाहाबाद रेलवे सर्विस कमीशन का फॉर्म भरो, परीक्षा दो, उत्तीर्ण हो और फिर जॉब लो। पक्की जॉब लो जिससे आप को कोई भी सरकार आये, निकाल न सके। कुछ लोग उनके इस सुझाव से सहमत नहीं थे। पर मुझे ये सुझाव अच्छा लगा। जॉब लें तो अपनी क़ाबलियत से लें, खैरात में क्यूँ लें। उस रात धरना जारी रहा पर मैं घर आ गया था। अगले दिन से ही मैं रेलवे सर्विस कमीशन की परीक्षा की तैयारी में जुट गया। हमारे लिए एक विशेष परीक्षा का प्रबंध किया गया। हमने रेलवे सर्विस कमीशन के फॉर्म भरे। बडौदा हाउस में एक रविवार को परीक्षा आयोजित की गई। फिर साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। इस परीक्षा में जो उत्तीर्ण हुए उन्हें इलाहाबाद सर्विस कमीशन से नियुक्ति पत्र मिला और फरवरी 1978 में हम रेलवे के बृहद परिवार का हिस्सा बने। इस पूरे प्रकरण में दिवंगत नेता जॉर्ज फर्नांडीज का बड़ा हाथ था। जो लोग अनुतीर्ण रहे वह संघर्ष करते रहे। और बाद में शायद उन्हें भी जॉब दे दी गई। पर आज जो मैं सिर उठा कर कह सकता हूँ कि मेरी जॉब मैंने अपनी मेहनत से पाई थी इसका श्रेय जॉर्ज फर्नांडीज़ को ही जाता है। बाद में जॉर्ज फर्नांडीज़ ने कुछ समय वी पी सिंह की सरकार में रेल मंत्री का कार्य भार भी संभाला। हालांकि उनकी यह पारी कुछ छोटी ही रही पर काफ़ी उपलब्धि पूर्ण थी। कोंकण रेलवे प्रॉजेक्ट जिसने मैंगलौर को मुम्बई से जोड़ दिया उन्हीं के प्रयासों का परिणाम था। पिछले काफ़ी समय से वह सक्रिय राजनीति में नहीं थे। आज उनके दिवंगत होने का समाचार पढ़ा तो पुरानी स्मृतियां ताज़ा हो गईं।
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