मुझे इसका अनुभव प्रथम बार तब हुआ जब कई वर्ष पहले मैं चन्दौसी गया। कम्प्यूटर विषय पर मुझे वहाँ प्रशिक्षण ले रहे छात्रों को पढ़ाना था। मेरे कमरे के बाहर, रात की रानी का झाड़ था। वहीं आस पास जूही और चमेली भी लगी थीं। मेरे बिस्तर के ठीक पास खिड़की थी। रात में चाँदनी से पूरा प्रशिक्षण संस्थान नहाया हुआ था। चाँदनी खिड़की से हो कर मेरे बिस्तर पर आ ठहरी थी। रात की रानी अपने पूरे यौवन पर थी और हवा उसकी सुगन्ध ले बह रही थी। एक जादू सा कर दिया था प्रकृति ने जिसने मुझे अपने वश में कर लिया था। आकाश में चाँद चल रहा था। और मैं कब कर के सो गया मुझे याद नहीं।
सुबह पक्षियों के कलरव गान से मेरी आँख खुली। रात की रानी की महक अब नहीं थी। उसका कार्य भार जूही और चमेली ने ग्रहण कर लिया था। पास में ही मोर ने मेघों को आवाज़ दी। जब तक मैं आगे बढ़ता कि यह आवाज़ कहाँ से आ रही थी, मेरे सामने मोर स्वयं आ उपस्थित हुआ। मैं उसकी गर्दन के नीले रंग को निहार ही रहा था कि उसने पंख फैला कर नृत्य शुरू कर दिया। मैं निकल गया कुछ दूर सैर करने।
जगह जगह आदर्श वाक्य लिखे हुए थे। एक जो मुझे आज तक याद है, वो था- "संसार निःसार है। यहाँ सार है तो केवल भगवान।" वास्तव में कितना सच है! इसी निःसार संसार में उसी की माया से सर्वत्र सार ही सार नज़र आता है। जो नहीं है वो सत्य भासता है। जो है वो दिखता नहीं है। कितनी विचित्र माया है उस मायापति की। उस परमपिता परमेश्वर को कोटि कोटि नमन।
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