Friday, 23 July 2021

अभयं सत्त्वसंशुद्धिः

मेरा उद्देश्य किसी के विश्वास को ठेस पहुंचाना नहीं है। बस अपनी बात रखने भर का ही है। 

कुछ माह पूर्व मेरे एक परिचित मुझसे मिलने मेरे कार्यालय में आये। इधर उधर की कुछ बातें करते हुए उन्होंने मेरे कमरे को गौर से देखा और बोले, "एक सलाह दूँ?" मैंने कहा," जरूर दीजिये"। बोले, "आप अपना कमरा बदल लीजिये। यहॉं आप बीम के नीचे बैठे हैं जो वास्तु की दृष्टि से अशुभ है।" मैंने कहा पर यहाँ हर कमरे में बीम तो होगी ही।" बोले, "तो कम से कम अपनी मेज़ ही बीम के नीचे से हटा लीजिये।" मैंने दोनों ही कार्यों में असमर्थता जाहिर की तो कुछ अनमने से हो गए। बोले, "आप वास्तु को नहीं मानते?" मैंने कहा, "वास्तु छोड़िये, मैं तो कुछ भी नहीं मानता, सिवाय भगवान के!

इन दिनों मानो वास्तु विशेषज्ञों की भरमार हो गई है। अच्छे भले मकान को यदि तुड़वाना हो तो किसी वास्तु विशेषज्ञ से सलाह कर लें। आपके जीवन में कोई परिवर्तन आये या न आये, आपकी माली हालत जरूर ढ़ीली हो जाएगी।

पूजा का कमरा कहाँ हो। तिज़ोरी किस दिशा में रखें। सीढ़िया कहाँ हो और उनके नीचे क्या हो। मुख्य दरवाज़ा किस दिशा में हो और उसका रंग कैसा हो। तोते की तस्वीर बच्चों के पढ़ने के कमरे में हो। पानी की टँकी छत पर किस दिशा में हो। ऐसे सैकड़ो सवालों के जवाब आपको वास्तु शास्त्र में मिल जायेंगे। दक्षिण दिशा यम की मानी जाती है अतः उस तरफ मुख्य द्वार नहीं होना चाहिए। पता नहीं यम कब अचानक से भीतर आ खड़े हों! गोया अन्य दिशाओं में जिनके मुख्य द्वार हैं वहाँ तो यम आज्ञा लेकर आते हैं। या आते ही नहीं क्योंकि आपने दरवाज़ा ही दूसरी दिशा में बना लिया है। और यदि आप दक्षिण के द्वार नहीं बदल सकते तो उस पर एक विंड चाइम टाँग ले। बस हो गए आप सुरक्षित!  चलिए मान लेते हैं कि ये सब ठीक है पर अपना मकान बनाते समय तो आप इनमें से कुछ शर्तें पूरी कर सकते हैं। पर यदि आप मेरे जैसे सरकारी आवास में हैं या किराये के मकान में रहते हैं तो क्या करेंगे? 

एक नया शगुफ़ा छिड़ा हुआ है जिसे कहते हैं पॉज़िटिव एनर्जी या नेगेटिव एनर्जी। मेरे जैसे अल्प ज्ञानी के लिए तो ये समझ से परे है। एनर्जी जो ऊर्जा है वो तो ऊर्जा ही रहेगी। अब ऊर्जा कैसे पॉज़िटिव या नेगेटिव हुई?  चार्ज जरूर पॉजिटिव या नेगेटिव हो सकता है। और कोई विंड चाइम दरवाज़े पर लटका के कैसे ऊर्जा को वो भी तथाकथित पॉज़िटिव ऊर्जा को अपने घर में आमंत्रित कर सकता है। हाँ , कुतर्क करके आप शायद अपनी बात इसके विपरीत सिद्ध कर दें। पर सत्य तो सत्य ही रहता है।

कोविड के चलते पिछले वर्ष से कोई किसी के आ जा नहीं रहा। ऐसे में चूंकि ड्राइंग रूम बन्द ही रहता है, वहाँ टँगी घड़ी भी बंद हो गई। एक दिन एक परिचित आये। घड़ी देखते ही कहने लगे कि घर में रुकी हुई घड़ी नहीं लेनी चाहिए। अब बताइए, घड़ी एक मशीन है जिसे आदमी ने बनाया है अपनी सुविधा के लिए। अब वो चलती रहे या रुक जाए इसमें अपशगुन कैसा? समय कोई आपकी घड़ी के हिसाब से तो चलता नहीं। वो तो निरंतर चलता जा रहा है।  जैसे बिना चाहे दुःख आते हैं वैसे ही कर्मानुसार सुख भी आते रहते हैं। 

कुछ राहु काल को इतना महत्व देतें हैं कि दिन में किस समय राहु काल है ये उन्हें रोज़ पता होता है और  वो उस काल में घर से पैर ही बाहर नहीं धरते। कुछ पहले दायाँ कदम बाहर रखते हैं। ऐसे एक नहीं सैकड़ो डर हैं जिनसे व्यक्ति ग्रसित है। 

बहुतों को तो मैं जानता हूँ जिनके बच्चे जन्मपत्री मिलने के इंतज़ार में उम्र दराज़ हो गए हैं। और बहुतों ने जन्मपत्री के अधिकतम गुण मिलवाये पर विवाह असफ़ल रहा। अधिकतम लोग मानते हैं कि बच्चों के विवाह वो तय करते हैं। मेरे विचार से इससे बड़ी भ्रांति नहीं हो सकती। प्रभु के खेल निराले हैं। हम इस जन्म की योजना बना सकते हैं वो भविष्य के कई जन्मों की योजना पूर्व में ही बना लेता है। शादी विवाह कोई संयोग नहीं हो सकता। न ही उसे आप तय कर सकते हैं। कौन सी आत्मा किस माता पिता के द्वारा कब संसार में आयेगी ये बहुत पहले से तय है। इसमें आप का कोई हस्तक्षेप संभव ही नहीं है। योजना इतनी विस्तृत है कि यदि जिन माता पिता के द्वारा आत्मा को धरा पर आना है वो धरा पर अभी जन्में ही नहीं, तो वो आत्मा चन्द्र लोक में उचित समय की प्रतीक्षा करती रहती है। श्रीमद भागवत में आज से पांच हज़ार वर्ष पूर्व ही भविष्य में होने वाले राजाओं के और उनके पुत्र ,पोत्रों, प्रपौत्रों तक के नाम तक का वर्णन मिलता है। तो इतनी विस्तृत योजना में हम जन्मपत्री मिला कर ये समझते हैं कि विवाह हमने तय कर लिया! कितनी विचित्र बात है। हम केवल प्रयत्न कर सकते हैं और कुछ नहीं।

मेरा ज्योतिष विज्ञान से कोई बैर नहीं है। पर मैं मानता हूँ कि इस विज्ञान के विद्वान अब कोई बिरले ही बचें हैं। और कर्म फल सभी पत्रियों से ऊपर है। होनी कहाँ टलती है! जगत प्रसिद्ध है;

मुनि वशिष्ट से पंडित ज्ञानी, सोध के लगन धरी ।
सीता हरन मरन दशरथ को, वन में बिपति परी ।
करम गति टारे नहीं टरी......

मेरे विचार से खेल बस इतना है कि व्यक्ति को डरा दो। इतना डरा दो कि उसे आपकी बात सत्य लगने लगे। फिर उसे जैसे चाहो, जितना चाहे निचोड़ लो। बीमा पॉलिसी बेचने वाला ये कर रहा है, डॉक्टर ये कर रहे हैं, वकील ये कर रहे हैं । पंडित ये कर रहे हैं।  वास्तु शास्त्री ये कर रहे हैं। जिसका मौका लगा वो बस आपको डरा रहा है। और डरा रहा है। अशुभ से डरा रहा है। मृत्यु से डरा रहा है। हानि से डरा रहा है। अस्वस्थता का डर दिखा रहा है। अपमान का डर दिखा रहा है। दरिद्रता का डर दिखा रहा है। और भी जिससे आप डरते हैं उसका डर दिखा रहा है।

वो डरा पा रहा है क्योंकि आप डर रहे हैं। जहाँ आप ने डर को छोड़ा वहीं, उसी क्षण ये सारे नियम कानून आपके लिए बेकार हो जाते हैं। फिर आप चाहे वास्तु की दृष्टि से पूर्णतया निकृष्ट घर में क्यों न रहें या फिर आपके घर की सारी घड़िया रुकी रहें, आप पर कोई आपदा नहीं आएगी। बस डर छोड़ना होगा। किंचित मात्र भी किसी अमंगल का भय न हो तो आप अमंगल में भी मंगल ही देखेंगे। गीता में, दैवी सम्पदा को प्राप्त पुरुषों के लक्षण बताते हुए भगवान ने "अभयं" अर्थात भय का सर्वथा अभाव पहला लक्षण बताया है।

अंतिम बात। यदि आप डर को नहीं छोड़ पा रहे हैं या फिर किसी अमंगल का भय लिए बैठे है तो फिर घर का दरवाज़ा यदि दक्षिण दिशा में है तो उसका उपाय कर लें। या घड़ी रुकी है तो उसमें बैटरी डाल कर सही समय सेट  कर के चला दें। जन्मपत्री जरूर मिलवाएं; राहु काल देख कर शुभ कार्य करें, आदि आदि ।
क्योंकि आपका मन इतना शक्तिशाली है कि जो आप सोचते हैं वैसा वो कर देता है। आपके भीतर बैठा डर आपके लिए अवश्य अमंगल ला सकता है क्योंकि मन की शक्ति ही ऐसी है। 

इसलिए जिसने इस डर  को बाहर निकाल दिया; जिसका परमात्मा पर अटूट विश्वास है; जो पूर्णतया उसी पर आश्रित है; जिसके समस्त कार्य उसी के लिए हैं; जो मंगल अमंगल सब उसी का खेल मानता है, वो सर्वथा अभय है । उसे कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। वो हर परिस्थिति में आनन्द से अपना जीवन व्यतीत करता है।

 

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