Monday, 19 July 2021
निंदक नियरे राखिये
कबीर ने कहा था - निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय। मैं सोचने लगा कि उन्हें अंगेज़ी का थोड़ा बहुत ज्ञान तो अवश्य रहा होगा वरन वो "नियर" शब्द का प्रयोग कैसे करते! खैर, उन्हें ये इल्म तो बिल्कुल ही नहीं रहा होगा कि भविष्य में आंगन तो रह ही नहीं जाएंगे। अब तो बॉलकोनी होती हैं और वो भी बस इतनी की आप खड़े भर हो सकें और आसमान देख पाएं। वरना बहुमंजिला इमारतों के कबूतर खानों में अधर बीच में टँगे टँगे ही आप ज़िन्दगी गुज़ार देतें हैं। इन बाल्कोनियों में आप चाहें भी तो कुटी नहीं डाल सकते। वैसे भी आजकल सोशल मीडिया के मंच से आप दूर रहते हुए भी किसी की जी भर कर निंदा कर सकते हैं। दिन में कई बार कर सकते है। प्रतिदिन कर सकते है। अर्थात जितना चाहें निंदा रस ले सकते हैं। तो फिर निंदक को पास रखने की क्या आवश्यकता है! और निंदा भी इस मीडिया पर प्रशंसा से अधिक गति से आप तक और आप के चाहने वालों तक पहुंच जाती है। पर विडम्बना ये है कि निंदा सुन कर अपनी सफ़ाई करने वाले अब कहाँ मिलते हैं। उनका तो मानना है कि चाहे जितना पानी और साबुन लगे, सफ़ाई तो निंदक की करनी है। वो तो इसी मीडिया पर निंदक को चेताते हैं कि बाज़ आ जाओ अपनी हरकतों से। और इस पर भी यदि निंदक न माने तो उसको ही साफ़ अर्थात ब्लाक कर देते हैं। कबीर को पता होता तो शायद यह दोहा न रचते। वैसे भी मेरा मानना है कि दोहे चौपाइयां उस काल विशेष के लिए ही रची जाती हैं। काल विशेष के परे या तो इनके अर्थ बदल जाते हैं या फिर ये प्रासंगिक नहीं रहती। अब ये कोई सार्वभौम सत्य तो है नहीं कि हर काल में मान्य हो। फिर ये तो कलियुग है। यहाँ तो सत्य भी रोज़ अपना रंग बदल लेता है। तो फिर औरों की तो बात ही क्या है! मेरी इस पोस्ट की यदि आप प्रशंसा न करें तो कोई बात नहीं। हाँ निंदा करेंगे तो ब्लाक होने का खतरा तो है ही। वो एक गीत है न - तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं। तुम किसी गैर को चाहोगी तो मुश्किल होगी।
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