दिल्ली में रिकॉर्ड तोड़ ठंड पड़ रही है। ऐसे में सबसे मुश्किल काम है सुबह के दैनिक कार्य से निवृत होना और नहाना। टॉयलेट की सीट भी इतनी ठंडी होती है कि उस पर बैठते ही 440 वोल्ट का झटका लगता है। और यदि आप से पहले कोई नहा कर उसे गीला कर गया हो तो ये झटका 1000 वोल्ट का हो जाता है। गीज़र का पानी भी क्या करे ! जब तक ठंडा पानी मिले और वो नहाने लायक तापमान पर आए तब तक तो शॉवर से ठंडा पानी आना शुरू हो लेता है।
एक मित्र बता रहे थे कि यदि ठंडा पानी कोई सीधा सिर पर डाल लें तो स्वर्ग जाने का नम्बर लग सकता है। तो दूसरे ने कहा कि टॉयलेट के जेट के पानी से इतना करंट लगता है कि उससे भी व्यक्ति स्वर्ग सिधार सकता है। अब समझ आ रहा है ये अंग्रेज़ पानी की जगह पेपर का प्रयोग क्यों करते हैं! अब तो लगता है जापान की तरह यहाँ भी टॉयलेट और गीज़र के पानी का तापमान अपनी सुविधानुसार रखने की व्यवस्था होनी चाहिए।
यदि आप गर्म खाने के शौकीन हैं तो इन दिनों एक ही तरीका है कि आप गैस पर तवा रख कर उस पर बैठे और खाना खाएं। वर्ना गैस से उतर कर आप की थाली तक आते आते खाना तो गर्म रह ही नहीं सकता।
अभी तो कहा जा रहा है ठंड और कहर बरपा करेगी। दारू के शौकीन तो फिर भी झेल लेंगें, लौंग खा कर सर्दी भगाने वाले मुझ जैसे पंडित क्या करेंगे?
इसी पर याद आया कि बहुत वर्ष पहले हम तीन मित्र मसूरी में थे। बर्फ इतनी पड़ी थी कि पूरी घाटी देहरादून से कट गई थी। जिस होटल में हम ठहरे थे वहाँ न अलाव था न कोई हीटर ही। बिस्तर इतना ठंडा कि मानो बर्फ की सिल्ली पर सो रहे हों। ज्यादातर कमरे खाली थे। जब ठंड के मारे दाँत बजने लगे तो मेरे दो साथियों ने पेग लगा लिया। मैंने दो लौंग चबा लीं पर उनसे क्या होना था। मैंने रूम सर्विस को कॉल किया तो एक गोरखा सा दिखने वाला व्यक्ति आया। मैनें बड़ी आशा से कहा कि बिस्तर बहुत ठंडा है कोई हीटर-वीटर की व्यवस्था हो सकती है क्या? उसने मेरी और अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा। मैंने समझा शायद पैसे चाहता है। मैंने कहा मैं रात भर के किराए के हिसाब से पैसे अलग से दूंगा। वो बोला वो तो ठीक है शाब पर ऑफ सीज़न है न। सब नीचे चली गईं हैं। वरना मैं जरूर कोई न कोई इंतजाम कर देता। जब तक मुझे समझ में आया, वो जा चुका था और मेरे दारू मित्र मुझ पर हँस रहे थे।
अभी तो दिल्ली शिमला से भी ठंडा हो रहा है। मेरे एक मित्र हैं जो 118 वर्ष की रिकॉर्ड तोड़ ठंड में निरुद्देश्य दिल्ली की सड़कों पर घूमने निकल पड़े। वैसे स्वभाव से वो घुमक्कड़ी ही हैं। पर उनकी हिम्मत की मैं दाद देता हूँ। उन्होंने फेस बुक पर अपनी तस्वीरें पोस्ट करी थीं।
अपनी तो सुबह शाम की टहल इस सर्दी की भेंट चढ़ चुकी है। मैं तो फिर कम्बल छोड़ दूं पर ये कमबख़्त कम्बल ही मुझे नहीं छोड़ रहा है। अब तो लिखते लिखते उँगली भी जम रही है। चलिए अलविदा। अपना ख्याल रखें इस सर्दी में।
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