1880 में अमेरिका की आबादी इतनी बढ़ चुकी थी कि जनसंख्या की गणना में सात साल लग गए। अमेरिका कोई ऐसा तरीका अपनाना चाह रहा था जिससे ये काम जल्द हो सके। इसी बीच फ्रांस में जोसेफ़ मैरी ने एक ऐसी बुनाई मशीन ईज़ाद की जिसमें लकड़ी के बोर्ड को एक अलग पैटर्न में छेद कर इस्तेमाल करने से बुनाई में वो डिज़ाईन अपने आप बुन जाता था। बाद में यही विधि कार्ड पंचिग से डेटा तैयार करने का आधार बनी।
1890 में, हरमन होलिरीथ ने इसी पंच कार्ड सिस्टम को अमेरिकी जनसँख्या की गणना के लिए प्रयोग कर सात वर्ष का कार्य मात्र तीन वर्ष में पूरा कर दिखाया जिसे अमेरिकी सरकार की कई बिलियन डॉलर की बचत हुई। कम्प्यूटर की आधार शिला रख दी गई थी।
1953 में पहली कम्प्यूटर भाषा कोबोल COBOL बनाई गई। जो लिखने में साधारण अंग्रेज़ी की तरह थी पर कम्पाइल होने पर मशीनी भाषा में परिवर्तित हो जाती थी। इससे कम्प्यूटर को निर्देश देने के लिए मशीनी भाषा में कोडिंग की आवश्यकता नहीं रही। 1954 में फ़ोर्टरान FORTRAN भाषा का विकास हुआ। 1958 आते आते, इंटिग्रेटेड सर्किट IC कम्प्यूटर चिप के रूप में प्रयोग में आने लगे। पर अभी कम्प्यूटर आम आदमी के लिए तैयार नहीं था। इसका प्रयोग बड़े संस्थानों, वैज्ञानिक कार्यशालाओं तक ही सीमित था।
1960 के अंत तक भारतीय रेल में कम्प्यूटर आ गया था जब 9 ज़ोनल रेलवे, तीन प्रोडक्शन यूनिट्स और रेलवे बोर्ड में IBM 1401 मेन फ्रेम लगाए गए। वो अलग बात है कि आरक्षण के कंप्यूटर युग का प्रारम्भ इसके काफ़ी बाद हुआ। बहरहाल मेरे इस दुनियां में आने तक कम्प्यूटर की विकास यात्रा इतनी आगे बढ़ चुकी थी।
1969 में बेल कम्पनी ने एक नया ऑपरेटिंग सिस्टम पेश किया जिसका नाम UNIX रखा गया। ये 'C' भाषा में लिखा हुआ था और विभिन्न कम्प्यूटरों पर चल सकता था। ये OS पोर्टेबिलिटी में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इसके एक वर्ष बाद ही नई बनी इंटेल कंपनी ने एक ऐसी मेमोरी चिप ईज़ाद की जो डेटा की हर बिट को एक छोटे से मेमोरी सेल जो कैपेसिटर और ट्रांजिस्टर से बना हो, में स्टोर करने की क्षमता रखती थी। इसके कपैसिटर को चार्ज या डिस्चार्ज किया जा सकता था। चार्ज का अर्थ होता है - 1 और डिस्चार्ज का 0 - बाइनरी के इन्हीं दो अंको को कम्प्यूटर समझता है। इसे DRAM चिप के नाम से जाना गया जिसका अर्थ है - डायनामिक रेंडम एक्सेस मेमोरी। फिर तो विकास की गति तेज होती चली गई।
1971 में फ्लॉपी डिस्क का अविष्कार हुआ जिससे दो कम्प्यूटरों में डेटा शेयर किया जाना संभव हुआ। 1973 में, रॉबर्ट मेटकॉफ ने ईथरनेट बना लिया जिससे दो या इससे ज़्यादा कम्प्यूटर आपस में जोड़े जाने सम्भव हुए।
1975 में बिल गेट्स ने अपने एक सहपाठी के साथ मिल कर माइक्रोसॉफ्ट नाम से कंपनी बनाई। इसके अगले ही वर्ष स्टीव जॉब्स ने एप्पल कंप्यूटर शुरू किया। एप्पल का विंडो बेस्ड ग्राफ़िक यूजर इंटरफ़ेस होने के बाबजूद भी एप्पल आम आदमी का कंप्यूटर नहीं बन पाया। 1981 में IBM ने पहला पर्सनल कम्प्यूटर बाज़ार में उतारा। ये MS-DOS ऑपरेटिंग सिस्टम पर चलता था और इसमें दो फ्लॉपी ड्राइव थीं। इसी के साथ माइक्रोसॉफ्ट का MS-DOS ऑपरेटिंग सिस्टम आम आदमी तक पँहुचा और खूब चला। पर अभी भी ये ग्राफ़िक में एप्पल से बहुत पीछे था।
1985 में माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज की घोषणा की। पर ये अभी भी MS-DOS पर ही चलता था। फिर धीरे धीरे MS-DOS इतिहास हो गया। और इसकी जगह विंडोज ने ले ली। आज विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम से सभी परिचित हैं।
15 मार्च 1985 में ही पहला डॉट कॉम डोमेन नेम symbolics.com रजिस्टर्ड किया गया। इसके कोई चार वर्ष बाद 1989 में , ब्रिटिश वैज्ञानिक बर्नरस ली ने www का अविष्कार किया। जिसे आज हम सब परिचित हैं। इसके पीछे जो सोच थी ,वह तेज़ी से उभरती तकनीक को जिसमें कंप्यूटर, डेटा नेटवर्क और हाइपरटेक्स्ट शामिल थे, एक ताकतवर विश्वव्यापी सूचना तंत्र के रूप में समाहित करने की थी , जिसे आसानी से प्रयोग में लाया जा सके। इंटरनेट की शुरुआत हो चुकी थी हालांकि ये आम आदमी की पँहुच से दूर था। मुझे याद है विदेश संचार निगम लिमिटेड से इंटरनेट कनेक्शन लेना होता था जो टेलीफोन लाइन के जरिये मिलता था और जिसकी स्पीड बहुत कम होती थी। हमारे ऑफिस में ये सुविधा कुछ उच्च अधिकारियों तक ही सीमित थी।
मैं 1980 से कंप्यूटर की इस विकास यात्रा का साक्षी रहा हूँ। 1980 के प्रारंभ तक मेरा इससे पाला नहीं पड़ा था पर इस क्षेत्र में हाथ आज़माने की उत्कट अभिलाषा थी। पर मैं ठहरा कॉमर्स का छात्र, मुझे कौन इस क्षेत्र में आने देता! और जैसे तैसे घुस भी जाऊं तो क्या मैं इस तकनीकी क्षेत्र में अपने को साबित कर पाऊंगा? पर जहाँ चाह, वहाँ राह। मैं इस क्षेत्र में कैसे घुसा और क्या मैं अपने आप को साबित कर पाया? ये सब अगली कड़ी में।
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