Tuesday, 1 September 2020

पहले सी दुनियां

एक कलाकार ने आत्महत्या क्या कर ली, सारे समाचार चैनलों को मानो जीवन दान मिल गया हो। सूखे पड़े खेतों में मानो वर्षा की रिमझिम फुहारें गिर गई हों। पुरानी बासी खबरों को पीछे छोड़ सभी में इस मुद्दे को भुनाने की मानो अंधी दौड़ लगी हो। नित नई कहानियां, नित नए साक्षात्कार, मुंबई पुलिस, पटना पुलिस, केंद्रीय जाँच आयोग, अंकिता, रिया, संदीप और भी न जाने कितने नाम इन्होंने रात दिन, चौबीस घँटे दर्शकों को परोसे। सारे चैनल एक ही गीत गा रहे थे, गा रहे हैं और अभी न जाने कब तक गाते रहेंगे - सुशांत को न्याय। जबकि सुशांत से इन्हें कोई हमदर्दी नहीं।  

सोशल मीडिया को ही ले लो। वो कैसे इससे अछूता रह सकता था। फेस बुक, ट्विटर, व्हाट्सएप या इंस्टाग्राम सभी पर यही चल रहा है। न जाने कौन कौन से चहरे जिन्हें हम आज से पूर्व नाम से भी नहीं जानते थे, रातो रात सोशल मीडिया पर छा गए। सभी एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं बिना ये जाने कि इसके छीटें तो उन पर भी गिर रहे हैं। पर अपना दामन कौन देखे! वो तो दूसरे का दामन मैला करने में वयस्त हैं। किसी को कोई मतलब नहीं है मरने वाले के पिता या परिवार से। इन्हें तो बस अपनी वियूइंग बढ़ानी है। कुछ तो फीता लेकर मृतक के पलंग से छत की ऊंचाई नाप रहे हैं ये बताने को कि ये आत्महत्या नहीं, हत्या है। इन्हें तो किसी जांच एजेंसी में होना चाहिए था, समाचार चैनल में पता नही क्या कर रहे हैं। सारे चैनल एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। न कोई उन्नीस न ही बीस। 

मुझे इस पत्रकारिता से न तो ऊब होती है न ही घृणा। मुझे तो उन दर्शकों पर तरस आता है जो इस तरह के घटिया समाचार देखते, सुनते हैं। फिर उन पर टीका टिप्पणी करते हैं। सोचता हूँ कितना गिर गया है पत्रकारिता का स्तर! इन सब के बीच आज भी दूरदर्शन समाचार अपना स्तर बनाये हुए है। विविध भारती से प्रसारित समाचार आज भी अपनी गरिमा बनाये हुए हैं। मेरे जमाने के लोगों ने बी बी सी न्यूज़ तो रेडियो पर जरूर सुनी होगी। शार्ट वेव के बैंड पर बड़ी मुश्किल से ये रेडियो स्टेशन लगा करता था।

 ब्लैक एंड व्हाइट टी वी पर जब सलमा सुल्तान बालों में फूल लगा समाचार वाचन करती थी तो पूरे दिन के समाचार बिना चेहरे पर कोई भाव लाये पढ़ जाती थी। न कोई शोर, न बहस, न आरोप प्रत्यारोप। बस विशुद्ध समाचार। जब से ये समाचार चैनलों का युग आया है, इसने समाचारों की, उसके प्रसारण के तरीके की धज़्ज़िया उड़ा दी। आज समाज़ में जो अशांति व्याप्त है, जो मूल्यों का ह्यास देखने में आता है, उसके लिए बहुत हद तक ये समाचार चैनल दोषी हैं। और क्यों न हो, इन्हें पैसा ही इसी का मिलता है। कुछ दिन पहले मैं कँही इनको मिलने वाली तन्खाह के बारे में पढ़ रहा था। अगर वो ख़बर ठीक है तो इन्हें माह का एक करोड़ से लेकर पचास लाख तक मिलता है। जो जितने दर्शक बटोर सके उसे उतना ही अधिक मेहनताना। 

ये समाज़ को पता नहीं कहाँ ले जाएंगे! आज कल समाचार देख मन विचलित हो जाता है। और ऐसा नहीं है कि ये केवल उल्टे सीधे समाचार ही परोसते हों। इसके अलावा और भी बहुत कुछ ऐसा दिखाते हैं जिनका समाचारों से दूर दूर तक का नाता नहीं होता। मसलन बिल्ली को कैट वॉक करते, चीतों को कम्बल ओढ़ सोते, पार्क में भूत की झूला हिलाते। 

यदि शांति चाहिए तो न्यूज़ चैनलों से और सोशल मीडिया से परहेज़ करें। आप पायेंगे कि सर्वत्र शांति है। दुनिया सुरक्षित है। कोरोना का भय कम हो गया है। दुनियां फिर पहले सी हो गई है।

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