Friday, 25 September 2020

कपलचेलैंज

इन दिनों जिसे देखो फेस बुक पर हैश टैग कपलचैलेंज पर अपनी और पत्नी या पति की फ़ोटो पोस्ट कर रहा है। फेस बुक की माने तो अब तक 25 लाख जोड़े अपनी फोटो पोस्ट कर चुके हैं। और ये नम्बर बढ़ता ही जा रहा है। हमारे एक समझदार पुराने मित्र हैं जो अब फेस बुक पर भी जुड़े हैं। जब उन्होंने अपनी पत्नी के साथ फ़ोटो पोस्ट करी तो हमने उनसे जानना चाहा कि इसमें चेलैंज क्या है? तो बोले, 'यही तो चेलैंज है।' हमारी समझ नहीं आया कि ये कैसा चैलेंज है भाई! पत्नी या पति संग फ़ोटो डालना कौन सी बड़ी बात है! हमने आगे पूछा कि अपनी पत्नी के साथ ही फ़ोटो पोस्ट करनी है या दूसरे की पत्नी के साथ। अब हमारी समझ से तो चेलैंज वो ही है जब दूसरे की पत्नी के साथ फोटो पोस्ट की जाए। तो वे बोले कि ये तो पोस्ट करने वाले कि जोख़िम उठाने की क्षमता पर निर्भर करता है। अपनी तो समझ आया नहीं। हाँ, ऐसा एक चेलैंज कभी हमने दिया था अपने एक मित्र को। जोश में आकर उन्होंने चेलैंज ले तो लिया पर लेने के देने पड़ गए। 

बात पुरानी  है। हाँ, पुरानी ही होगी क्योंकि तब हम जवान थे । कोई 21-22 वर्ष के। बड़ौदा हॉउस में बसंत मेला लगा था। कई दिनों से तैयारी चल रही थी। खाती काम पर लगे थे। अस्थायी स्टॉल बनाये जा रहे थे। टैंट लगाए जा रहे थे। आख़िर वो दिन आ गया जिस दिन मेला लगना था। विभिन्न मंडलों से कर्मचारी आये हुए थे । हर मंडल की प्रसिद्ध वस्तुएं बिक्री के लिए उपलब्ध थीं।  हम और हमारे एक मित्र भी चले आये मेले की रौनक देखने। क्या रँगीन माहौल था। लड़के लड़कियां तड़क भड़क के साथ इधर उधर विचर रहे थे। कँही जोधपुरी स्टाल तो कँही मुरादाबादी पंडाल। कँही लखनऊ का चिकन वर्क तो कँही जोधपुरी बन्धेज। जैसे जैसे शाम ढल रही थी, भीड़ बढ़ती जा रही थी। जँहा रोज़ फिनाईल की गंध आया करती थी वँहा की फ़िज़ा तरह तरह के इत्र फुलेल की महक से सरोबार थी। पूरा मेला रोशनी से नहाया हुआ था। इस वर्ष के मेले का विशेष आकर्षण था कैंटीन में लगा बार। फरवरी का गुलाबी मौसम, बसंत ऋतु, जवां उम्र और ये समा! ऐसे में किस का दिल न दीवाना हो! हुआ तो हमारा भी पर हमें तो इसे मारने की आदत थी सो मार कर बिठा दिया। बेचारा कुछ नहीं बोला। पर हमारे मित्र अपना मन नहीं मार सके। बोले, 'यार कैंटीन में बार लगा है। चलो एक एक पैग लेते हैं।' मैंने कहा कि मैं तो पीता नहीं। तो बोले, ' मत पीना। साथ तो चलो। बारटेंडर ही देख लेना। हो सकता है कोई खूबसूरत बला ही सर्व कर रही हो। ' हम चल पड़े। कैंटीन के काउंटर से जँहा रोज़ लाइन में लगकर हम चाय, समौसे और गाजर-खोए की बर्फी के  कूपन लेते थे आज वहाँ कैंटीन में प्रवेश के लिए टिकट बिक रहे थे और वो भी अच्छे खासे महँगे। खैर, हमारे मित्र ने लाईन में लग टिकट खरीदे और हम बेधडक़ कैंटीन में घुसने लगे। पर गेट पर खड़े व्यक्ति ने हमें रोक दिया। बोला, 'कपल्स ओनली'। आज वो व्यक्ति होता तो समझता कि कपल्स के दायरे में दो लड़के या दो लड़कियां भी आती हैं। पर वो समय कुछ और ही था। तब विपरीत लिंग के जोड़े को ही कपल्स कहा जाता था। हम दोनों एक दूसरे की शक्ल देखने लगे। तब हमने देखा कि अंदर प्रवेश करने वाले सभी जोड़े ही थे। हमारा ऑफिस और हम पर ही रोक!  हमारी भृकुटियां तन गईं। पर हमारी एक न चली। प्रवेश द्वार पर खड़ा व्यक्ति टस से मस नहीं हुआ। हम पीछे हट गए। 

अब क्या करें? हमारा मित्र निराश था। वो बड़बड़ाया, 'कोई तो ढूंढ़नी पड़ेगी।' वो इधर उधर देख रहा था। उसकी निगाहें किसी आधुनिक अकेली लड़की को तलाश रही थी जो उसे अंदर जाने में मदद कर सके। जल्द ही उसने एक लड़की ढूंढ़ ली। वो मिनी स्कर्ट्स और टाइट टॉप पहने पीपल के पेड़ के नीचे अकेली खड़ी सिगरेट से धुआं उड़ा रही थी। एक मिनी पर्स उसके हाथ में टँगा था जिसे वो रुक रुक कर झूला रही थी। शायद किसी के इंतज़ार में थी। 

'ये मान जाएगी।', हमारा मित्र बोला। 

'पगला गए हो क्या?देख नहीं रहे कितनी ऊंची हील पहनी है। बेभाव की पड़ेगी। दारू पीने की जगह जख्मों पे लगानी पड़ेगी।',हमने अपना डर जाहिर किया।

'अमां तुम भी यार। क्या लड़की के चरण देख रहे हो। जीवन में कोई लड़की नहीं पटा सकते। कुँआरे ही मरोगे। अरे मुख देखो फिर बताओ, मानेगी या नहीं।, 'वो ढिटाई से बोले।

'रहने दो। तुम्हारे साथ तो नहीं ही जायगी। ' हमनें चेलैंज किया। 'और हमें तो तुम्हारी ही मौत नज़र आ रही है। क्यों शाम खराब करते हो। चलो किसी और स्टाल पर चलते हैं। ',हमने सुझाव दिया।

'हमें चेलैंज करते हो ?'उनके स्वर में गर्व था।'चलो स्वीकार है।'

'देखो ! सोच लो। पिटोगे तो हम नहीं पहचानेंगे तुम्हें।'हमने कहा।

'अरे तुम्हारा चरित्र प्रणाम पत्र किसे चाहिए!' ,कहते हुए वो आगे बढ़ गए।

'सुनो तो...', हम पीछे से चिल्लाए। पर वँहा कौन सुनता! वो तो छलांग लगा चुके थे।

हम दूर खड़े  तेज़ धड़कते दिल से देख रहे थे। किसी अनहोनी की आशंका से दिल घबरा रहा था। वो टहलते हुए से उसके पास जा पँहुचे । पता नहीं उन्होंने उससे दो चार मिनट क्या बात की कि वो अनजान लड़की उनके साथ बार में जाने को तैयार हो गई। जब वो दोनों मेरे पास से गुजरे तो हमारे मित्र ने कनखियों से हमें देखा और मुस्कराए। हमें उनसे ईर्ष्या हो आई। एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए वो कैंटीन में चले गए और हम किसी खाने पीने के स्टाल की तलाश में स्कूटर स्टैंड की और लगे स्टॉल्स की तरफ़ जाने को मुड़ गए। अभी हम दो चार कदम ही चले होंगे कि हमारे मित्र तेज़ी से भागते हुए से आये जैसे उनके पीछे भूत लगा हो। बदहवास से बोले , 'चलो जल्दी निकलो यँहा से।' पीछे वो लडक़ी भी तेज कदमों से चली आ रही थी। ' हे! व्हाट हैपण्ड?' ,हम बस इतना ही सुन सके। 

चलते चलते हमने पूछा,' क्या हुआ? वापस क्यों आ गए?'

उन्होंने कहा, 'काउंटर पर पता है बारटेंडर कौन है।? हमने पूछा, 'कौन?' बोले, 'पापा! हमें क्या पता था कि उनकी ड्यूटी यँहा लगी है। कँही देख न लिया हो इस लड़की के साथ।पूछेंगे तो क्या जवाब दूँगा! '

हम मेन गेट से जल्दी से बाहर आये औऱ सामने जो भी बस रुकी, उस में चढ़ गए। 

बहुत कोशिश करने पर भी उन मित्र का नाम याद नहीं आ रहा। स्मृति धुँधली हो गई है। यदि रेलवे के फेस बुक मित्रों में से कोई हो और इस किस्से को पढ़ रहा हो, तो अपना नाम हमें अलग से सूचित जरूर करें।



No comments:

Post a Comment