पिछले दिनों यूँ ही बैठे बैठे सोचा कि फेस बुक समय नष्ट करने के अलावा कुछ नहीं है। सो एकाउंट डिलीट कर दिया। फिर जब कोरोना से ग्रस्त हो चौदह दिन का एकान्तवास काटा तो सोचा समय कैसे काटा जाय। पर ये निश्चय तो दृढ था कि कुछ भी हो, फेस बुक पुनः नहीं जॉइन करूँगा। इन दिनों साहित्य खूब पढ़ा। फिर कुछ शुभचिंतको के फोन आये जो जानना चाहते थे कि मैं फेस बुक से अचानक कँहा लापता हो गया। वो सभी मित्र मेरी ख़बर न मिलने से चिंतित थे। मैंने कहा कि मैं ठीक हूँ। इस बीच मेरी सासू मां ने इस नश्वर सँसार को अलविदा कह दिया। उनका स्वास्थ्य पिछले कुछ समय से ठीक नहीं चल रहा था। सो जयपुर चक्कर लगते रहे।
आज कई दिनों बाद करने को कुछ नहीं था। जैसे तैसे शानिवार कटा। दो फिल्में देख डाली। आज रविवार था। फिर वही प्रश्न आ खड़ा हुआ - क्या करूँ ! सोचा सो लेता हूँ। पर सो भी कितना सकते हैं? दिन में सो जाओ तो रात में नींद रूठ जाती है। कोरोना के चलते बाहर निकलना तो लगभग बंद ही है। फ़िर सोचा पुनः फेस बुक एकाउंट बनाया जाय। सो पुनः उपस्थित हूँ। सोचता हूँ जब जॉब नहीं होगी तो समय कैसे कटेगा। जयपुर प्रवास के दौरान यही प्रश्र मैंने अपने एक परिचित से किया जिन्हें सेवा निवृत हुए ग्यारह वर्ष हो गए हैं। उनका उत्तर अप्रत्याशित था। बोले, "हरा साग ले आओ। पत्ता पत्ता कर तोड़ो। पत्नी भी खुश और समय भी कटेगा।"
कल मैंने यही किया। बथुआ, पालक, सेंगरी, धनियां जो भी पत्नी ने लिया था सब अच्छे से सँवार दिया। पर मुश्किल से घंटा भर ही कट पाया। यँहा तो पूरा दिन काटना है। और दिन ही नहीं वर्षों काटने हैं। कुछ और सोचना पड़ेगा।
किसी ने कहा है कि हम समय नहीं काटते, समय हमें काट रहा है। शायद यही सत्य है। काफ़ी विचार करने के बाद भी यक्ष प्रश्न अपनी जगह खड़ा है- समय कैसे कटे? आपके पास कोई उत्तर हो तो बताएं। फ़िलहाल तो कल से ऑफिस है।
No comments:
Post a Comment