मेरा मानना है कि धर्म एक बहुत ही नाज़ुक और व्यक्तिगत विषय है। यही कारण है कि मैं इस विषय पर सामान्य तौर पर नहीं लिखता।
परन्तु कल जब एक के बाद एक क्रिसमस के बधाई संदेश पोस्ट होते रहे और लोग एक दूसरे को सोशल मीडिया पर क्रिसमस के अवसर पर मुबारकबाद देते रहे, तो मुझे एक बार फिर सनातन धर्म की विशालता का अनुभव हुआ। कितना विशाल है ये धर्म कि अन्य धर्मों को इतनी सुगमता से आत्मसात कर लेता है कि पता ही नहीं चलता कि ये उत्सव इस धर्म का नहीं है। इसके ठीक विपरीत अन्य धर्मों की संकीर्णता का भी विचार आया जब मैंने सोचा कि पिछले वर्षों में जन्माष्टमी या रामनवमी के उत्सवों पर कितने ईसाई मित्रों ने बधाई दी थी!
व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि मूल रूप में कोई भी धर्म बुरा नहीं है। पर यदि हम अपने अपने धर्मों में स्थित रहें, उसी का उत्सव मनाएं, अपने बच्चों को स्वधर्म के बारे में शिक्षित करें, उन्हें ये बताएं कि इस धर्म में उनका जन्म कोई अनायास घटना नहीं है, वरन प्रभु की सोची समझी लीला के कारण वे यँहा हैं, तो मैं समझता हूँ अधिक उचित होगा। वरन इसके कि हम उन्हें सांता क्लॉज बना कर क्रिसमस ट्री का सामने खड़ा कर फ़ोटो खिंचवाए। बच्चे के कोमल मन पर इन सबका बड़ा गहरा प्रभाव होता है जो भविष्य में स्वधर्म के प्रति उनकी सोच को प्रभावित कर सकता है।
गीता कहती है ;
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।
अतः आइये, हम सब जिस जिस धर्म में स्थित हैं उन्हीं का उत्सव मनाएं और इसमें गौरान्वित महसूस करें।
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