Friday, 2 December 2016

प्राची का विवाह

विवाह का घर। मेहमानों का जमघट। उदयपुर आने वाली हर ट्रैन रोज एक नया मेहमान ला रही है।हर एक मेहमान के आने र "जय श्री कृष्ण" अभिवादन की गूंज।एक हल्ला गुल्ला और चहल पहल। घर में आदमियों से ज्यादा अटेचियां, और बैग। बाहर चप्पल जूतो का ढेर।

अपनी अपनी अटेचियां संभालती महिलाएं। सर पर खड़े पति। किसी के कपडे नहीं मिल रहे तो किसी का तौलिया गायब है। बाहर सूखते कपड़ो में से जो अपने कपडे पहचान कर ले आये वो ही बुद्धिमान है। 

मेहमानों के साथ उनके भगवान् भी पधारे हैं। इन सब के बीच अपने अपने ठाकुर जी को भोग धरती महिलाएं। मोबाइल की तो मानो दुकान ही खुल गई है। अपना मोबाइल ढूंढना हो तो किसी को कह कर घण्टी देनी पड़ती है। चार्जर तो हर प्लग पॉइंट पर लटके हुए है। आप मोबाइल चार्जर पर लगा के हटे कि किसी ने आपका मोबाइल निकाल कर अपना लगा दिया।

सारा दिन भागते पुरुष और घर में अन्य कार्य संभालती महिलाएं।तेल चढ़ने की रस्म, हल्दी की रस्म, मेहँदी की रस्म। एक के बाद एक मंगल रस्म। हर रस्म के बाद माँ की भीगी आँखे। अपना दर्द छुपाते हुए मुस्कराने की कोशिश।

ठहाको के बीच दबती बात।नीचे पंगत में बैठ कर खाना और बाहर डिस्पोजेबल प्लेटों और दौनो का ढेर। इन सब के बीच नोट-बंदी पर चलती गरमा गर्म बहस। हर व्यक्ति ये बताना चाह रहा है कि उसने नोट- बन्दी के बात क्या क्या झेला। चाय के दौर नाश्ते की प्लेटों के साथ।

पूरे घर को पवित्र करती हवन सामग्री की खुशबु। नहाने के लिए लगती लाइन। संगीत संध्या पर नाचने को गीत चुनती दुल्हन की सहेलियां। देर रात तक ढोलक पर थिरकती ताल पूरी कॉलोनी के सन्नाटे को भंग करती । साथ में महिलाओं का सुमधुर संगीत हवा में तैरता हुआ। देर तक सोते बच्चे। और साथ में नोट-बंदी के चलते नगदी की किल्लत।

और इन्ही सब के बीच में दुल्हन के माता-पिता की विवाह की वर्षगाँठ का आयोजन। कटता केक, तालियों की गड़गड़ाहट और साथ मिल के उच्च स्वर में फिल्मी गाने।

बस दो दिन के बाद ये सब समाप्त। सभी अपनी अपनी दिनचर्या में पुनः व्यस्त। लड़की के विदा के साथ सभी कुछ सिमटता हुआ। एक और पिता का निभता हुआ फ़र्ज़।

यद्यपि आज कल के विवाह समारोह का आयोजन समयाभाव के चलते काफी कुछ सीमित हो गया है फिर भी ये सब से मिलने का, सब के एक साथ एकत्रित होने का एक अच्छा अवसर होता है।

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