Thursday, 29 December 2016

आदित्य - भाग 2

सर्पीली घुमावदार सड़क से होती बस मसूरी की तरफ बढ़ी जा रही थी। पहाड़ो पर चीड़ और देवदार के ऊँचे ऊँचे पेड़ लगे थे। कंही कंही ओक के पेड़ भी दिख पड़ते थे। धीमी गति से बस ऊपर चढ़ रही थी।एक तरफ पहाड़ तो दूसरी और गहरी खाई थी। कभी धूप खिल उठती थी तो कभी बदली छा जाती थी। हवा ठंडी और साफ़ होती जा रही थी। पहाड़ो के मौसम का कुछ ठीक नहीं रहता।इसलिए मैंने गर्म कपडे रख लिए थे। जल्दी ही बस मसूरी पंहुच गई। धूप का कंही नामो निशान नहीं था। वरन बूंदा बांदी शुरू हो चुकी थी।

बस से उतरते ही मैंने चारो और देखा। आदित्य और उसके साथ एक लम्बी, पतली सी लड़की कुछ दूरी पर खड़े थे। आदित्य अपनी पसंद दीदा पोशाक, सूट में था और लड़की ने हल्के आसमानी रंग की साड़ी पहनी थी। पीले रंग के छाते में वह खिल रही थी।

मुझे देखते ही आदित्य आगे बढ़ा। पीछे पीछे नीलिमा भी अपने छाते को उसके सिर के ऊपर करते हुए आगे बढ़ी।

"हाय बडी!, वेलकम टू क्वीन ऑफ़ हिल्स" आदित्य मेरे गले लगा।

"इनसे मिलो। ये नीलिमा है।" आदित्य ने मुझे नीलिमा से मिलवाया।

मैंने अब नीलिमा को पास से देखा। वह बेहद खूबसूरत थी। उसका नाम जरूर उसकी आँखों को देखकर रखा गया होगा। एकदम नीली आँखे थी उसकी। अब तक नीलिमा ने अपने बैग से निकाल कर एक छाता मुझे थमा दिया था।अब आदित्य नीलिमा की तरफ मुख़ातिब हुआ।

"और नीलू, इनसे मिलो। ये हैं रमाकांत। रमाकांत उपाध्याय।जिनके बारे में मैंने बताया था। कलियुग के हरिश्चंद्र हैं। लड़कियों में इन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है। घूस लेना ये महापाप मानते हैं। शराब, सिगरेट जैसे कोई शौक इन्होंने पाले ही नहीं।"

आदित्य बोलता ही जा रहा था।"अरे, जब धर्मराज के आगे खड़े होंगे तो क्या जवाब देंगें? कि दुनिया में जाकर क्या किया।"

"छी!अपने दोस्त के बारे में कोई ऐसे बोलता है?" अब नीलिमा बोली थी।"अच्छा तो मिस्टर रमाकांत जी ये बताइये कि हरिश्चन्द्र तो कभी  झूठ नहीं बोलते थे। फिर आपने उस दिन फोन पर मुझसे झूठ क्यों कहा था?"

"देखिये...." मैं बोलते बोलते अटक गया। "अच्छा ये बताइये मैं आपको भाभी कंहूँ या नीलिमा जी या नीलू जी?"

जवाब आदित्य ने दिया था। "नीलिमा कहो न। भाभी तो ये अभी बनी नहीं और नीलू नाम से तो मैं ही बुला सकता हूँ।"

"ठीक है। देखो नीलिमा उस झूठ के बारे में मैं पहले ही आदित्य से माफ़ी मांग चुका हूँ। अब तुम भी मुझे माफ़ कर ही दो।"

"चलो माफ़ किया।" कहते हुए वह खिलखिला उठी थी।

मैं सोच रहा था कि आखिर इस लड़की ने आदित्य में क्या देखा। उसका दांया हाथ तो...

"क्या सोच रहे हो?", आदित्य ने पूँछा तो मैं हड़बड़ा गया मानो उसने मेरे मनोभावों को पढ़ लिया था।

"कुछ...कुछ भी तो नही।"

अब तक चलते चलते हम माल रोड तक काफ़ी आगे आ गए थे। बूंदा बांदी जारी थी। नीलिमा और आदित्य एक छाते में थे। और मैं अपना बैग थामे दूसरे छाता पकड़ कर चल रहा था। पब्लिक लाइब्रेरी के साथ से थोड़ा नीचे जा कर एक छोटा सा कॉटेज था। लकड़ी का दरवाज़ा खोल कर एक छोटे से रास्ते से होते हुए नीलिमा हमें मुख्य दरवाजे तक ले आई। दोनों और घास लगी थी जो अभी अभी काटी गई लगती थी। छोटी छोटी क्यारियों में रंग बिरँगे फ़ूल लगे थे। बारिश अब रुक गई थी पर बादल बने हुए थे। नीलिमा ने बैग से चाबी निकाल कर दरवाज़ा खोला। शायद वह यँहा अकेली रहती थी।

"पापा किसी काम से "झारी पानी" तक गए हैं। शाम तक लौट आएंगे" - नीलिमा ने कहा।

हम अंदर बैठ गए। घर छोटा मगर सुसज़्ज़ित था। नीलिमा ने फायर प्लेस में आग जला दी थी और कॉफी ले आई थी। ठण्ड में कॉफी की उठती भाप से आदित्य के चश्मे पर ओस जम गई थी। वह अपना चश्मा साफ़ करने लगा।

"कल का क्या प्रोग्राम है?" चश्मा लगाते हुए आदित्य ने पूँछा था।

"कल शाम मेरी बर्थ डे पार्टी पर पापा हमारी सगाई अनाउंस करेंगे।" नीलिमा ने कहा था। "पर उससे पहले पापा तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं।"

"अब भी कोई बात करनी बाकी है?" आदित्य ने पूँछा था।

"मैं क्या जानू। होगी कोई बात। तुम क्यूं घबरा रहे हो? मैं तो हूँगी न साथ" - नीलिमा ने कहा था।

इसके बाद हम अपने होटल चले आये थे। नीलिमा अपनी कार से हमे छोड़ने आई थी। "कार तो तुम अच्छी चला लेती हो।" मैंने कहा।

"पहाड़ो पर कोई भी ड्राइवर एक्सपर्ट नहीं होता। बस भगवान् ही आपके साथ होता है। वरन ये गहरी घाटियां आपको कब अपने में समा लें, पता नहीं।" नीलिमा ने कहा।

"अच्छा अच्छा। तुम ध्यान से जाना।" लौटते हुए नीलिमा से आदित्य ने कहा था। जब तक कार मुड़ नहीं गई थी, आदित्य वंही खड़ा रहा था। अंदर आते हुए वह बहुत खुश था। अपना नया सूट निकाल कर उसने मुझे दिखाया जिसे वह कल पहनने वाला था।

फिर कुछ ऐसा घटा जो अप्रत्याशित था। जिसकी कल्पना हम तीनों में से किसी ने नहीं की थी। अपने जन्म दिन का निमंत्रण देकर लौटते हुए, अगले दिन नीलिमा की कार नियंत्रण खो कर गहरी खाई में जा गिरी। बहुत खोजने पर भी नीलिमा का शव बरामद नहीं किया जा सका। अपने जीवन के 22 वर्ष पूर्ण करके नीलिमा उन्ही वादियों में खो गई जंहा वह पली बढ़ी थी।

आदित्य ये झटका सह नहीं पाया। उसे दिल का दौरा पड़ा और हेलीकाप्टर से एयर लिफ्ट करके उसे देहरादून और फिर दिल्ली लाना पड़ा। मैं उसके साथ ही था।

समय से चिकित्सा मिल जाने से आदित्य का जीवन तो बच गया पर उसके ह्रदय का एक हिस्सा सदा के लिए क्षतिग्रस्त हो गया।

क्रमशः

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