रात के दो बजे रहे थे। माधव ने कलाई घड़ी पर नज़र डाली फिर रजिस्टर खोल कर उसमें अभी अभी गए हाल्ट स्टेशन का समय लिखने में व्यस्त हो गया। बंद खिड़की के शीशे से बाहर देखा तो पूरा जंगल अंधकार में डूबा हुआ था। दोनों तरफ घना जंगल और पेड़ों की कतारें थी। गाड़ी अपनी गति से भागी जा रही थी।
माधव मॉल गाड़ी का गार्ड था। पिछले दो वर्ष से इसी रूट पर चल रहा था। मध्य प्रदेश के जंगलो के बीच से यह लाइन गुज़रती थी। पास में कान्हा अभ्यारण्य था। दिन के समय यँहा से गुजरना आँखों के लिये एक दावत थी। हरी भरी प्रकृति अपने पूर्ण रूप से पूरे यौवन पर इन जंगलों में फैली थी। पर रात के समय यँहा से गुज़रना एक डरावना अनुभव था। सर्दियों की रात थी। माधव ने अपने ओवरकोट का कालर ऊपर कर लिया। खिड़कियां बन्द होने के बाबजूद भी डिब्बा ठंडा था। खुले दरवाज़े को बन्द करने का कोई उपाय नहीं था। गर्मियों के दिनों में तो बाहर के खुले हिस्से में आ कर माधव रेलिंग पकड़ कर खड़ा हो जाता था। अगला स्टेशन अभी काफी दूर था।
तभी उसे लगा की गाड़ी की रफ़्तार धीमी पड़ रही है। उसने वैक्यूम दर्शाने वाले मीटर की और देखा। वैक्यूम गिर रहा था जो इस बात का संकेत था कि ड्राइवर ब्रेक लगा रहा था। "ये राम सिंह को क्या हुआ", वह बड़बड़ाया। "गाडी क्यों रोक रहा है?"। पर उसके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। ब्रेकों के लगने की आवाज़ आ रही थी और वैक्यूम लगातार गिरता जा रहा था। धीरे धीरे गाड़ी रुक गई।
चारो तरफ घनघोर जंगल था। झींगरो की आवाज़ आ रही थी। कँही दूर सियार भी मिल कर "हुआ, हुआ" की आवाज़ निकाल रहे थे।
उन दिनों, स्टीम इंजन हुआ करते थे और आज की तरह ड्राइवर और गार्ड के पास बात करने के साधन नहीं थे। माधव ने 10 मिनट प्रतीक्षा की। पर गाडी तो जैसे थम गई थी। नीचे उतरने का माधव का साहस नहीं पड़ रहा था। कँही कोई जंगली जानवर आस पास घात लगाए बैठा हो। उन दिनों रास्ते में रोक कर डाकू गाड़ियां लूट भी लेते थे। कई आशंकाएं माधव के मन में आ रही थीं। पर ड्यूटी तो निभानी ही थी। यदि इंजन में कोई खराबी की वजह से गाडी रुक गई थी तो पास चलते सँचार के तारों से पोल के द्वारा संपर्क कर के अगले स्टेशन को सूचित करना था। ज्यादा देर के लिये ट्रैक को रोका नहीं जा सकता था। पीछे कितनी और गाड़ियां आ रही थीं।
साहस करके माधव नीचे उतरा। ठंड से बचने के लिए उसने ओवरकोट के बटन बंद किये और हाथों में दस्ताने चढ़ा लिए। टोर्च की रौशनी में आसपास देखता हुआ वह सशंकित क़दमो से इंजन की तरफ बढ़ चला। बीच में 70 डिब्बो का लंबा रैक था, जो उसे पार करना था इंजन तक पँहुचने के लिए।
कोई 40 डिब्बे ही पार किये होंगे कि राम सिंह टोर्च ले कर उसकी और आता दिखा।इससे पहले वह कुछ कहता, माधव ने पूछा,"क्या हुआ? गाड़ी क्यों रोक दी?" राम सिंह के चेहरे पर घबराहट साफ़ थी जो उसकी आवाज़ में भी प्रतीत हो रही थी। "सामने बीच ट्रैक पर एक आदमी लालटैन लिये गाड़ी रोकने का इशारा कर रहा था।,इतनी रात गये इस जंगल में कौन हो सकता है? शायद आगे ट्रैक टूटी हो। पर जब मैंने गाड़ी रोकी तो वह कंही दिखाई नहीं दिया।" राम सिंह ने हकलाते हुए कहा।
माधव को याद आया की राम सिंह ने इस रूट पर अभी कुछ दिन पहले ही चलना शुरू किया है। और आज शायद इस रूट पर उसकी पहली अमावस की रात है। उस पर शायद उसका हैल्पर भी नया था।
"क्या उसके धड़ पर सिर था", माधव ने पूछा । "तुम ऐसा क्यों पूँछ रहे हो? बिना सिर के भी कोई आदमी जिन्दा होता है?", राम सिंह की आवाज में घबराहट और बढ़ गई थी। माधव ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला, "चलो बाकी बातें इंजन में चल कर करते हैं। यँहा रुकना ठीक नही है।"
दोनों तेज़ क़दमो से इंजन में आ गए। राम सिंह ने गाडी आगे बढ़ाई। आदत के अनुसार उसने सीटी बजाने के लिए ऊपर लगा तार खींचा। रात का सन्नाटा चीरते हुए सीटी की गूंज पूरे जंगल में बिखर गई। सोते हुए पक्षी फड़फड़ाते हुए उड़े। हैल्पर ने भट्टी खोल कर कोयलों की दो चार खेप धधकती भट्टी में झोंक दी। भट्टी का ढक्कन खुलने से सर्दी में भी गर्मी से शरीर झुलसने लगा। तभी राम सिंह चिल्लाया, "वो देखो। वो फिर बीच में खड़ा रुकने का इशारा कर रहा है।" ये कहते कहते राम सिंह सिहर उठा क्योंकि ध्यान से देखने पर उसने गौर किया कि उसके धड़ पर सिर नहीं था। राम सिंह ने फिर सीटी बजाई। पर वह टस से मस नहीं हुआ। माधव चिल्लाया, "ब्रेक नही लगाना। वह कोई नहीं है।" इतनी देर में विशालकाय इंजन उसे रोंद्ता हुआ, फ़क फ़क करता आगे बढ़ गया।
"ये एक लाइन मेन था, जो वर्षो पहले गाड़ी के नीचे आकर मर गया था। तब से इसकी आत्मा इसी रुट पर भटकती है। अमावस की रात को ये इस रूट के सभी ड्राइवरों को लालटेन हिला कर रुकने का इशारा करता है। इस रूट के अभ्यस्त ड्राइवर इस बारे में जानते हैं और गाड़ी नहीं रोकते। तुम अभी इस रूट पर नए हो और पहली बार अमावस की रात्रि को चल रहे हो। इसलिए तुम्हें इस बारे में जानकारी नहीं है। आगे से ध्यान रखना और डरना नहीं। वह कुछ नहीं करता।", माधव ने विस्तार से समझाया।
गाडी की गति तेज हो गई थी। और अपने गंतव्य की और भागी जा रही थी। भोर का तारा उदय हो चला था।
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